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[७५ साधना की, और स्थूलभंद्र मुनि रूपाकोशा के विलास भवन में मजे से रहे, फिर उनकी साधना को सर्वाधिक महत्त्व क्यों प्रदान किया गया ? वहाँ जाकर तो कोई भी चार महीने व्यतीत कर सकता था। कहा है
जप तप करणी सोहिली, सोहिली रण-संग्राम ।
प्रकृति पाछी मोड़नी, 'याको मुश्किल' काम ।। · ऐसा सोचने वाले मुनि भी सामान्य नहीं थे। वे तपस्वी होने के साथ चतुर भी थे। अतएव उन्होंने अपने भावों को शीघ्र प्रकट नहीं किया। जिसमें चतुराई कम होती है वह शीघ्र ही अपने मनोभावों को प्रकट कर देता है, उगल" देता है। बुद्धिमान् अपने विचार को औचित्य की तराजू.. पर तोलता हैं और तोल-तोल कर बोलता है। ..... ... .. . .. . . . . . .... संघ का अदब, गुरुजी का मान और बिना विचारे काम न करना या न बोलना चाहिए इस बात का भान, इन सेब कारणों से वे मौन रहे । कडुए.
. घूट को पी गए।
. . . ........ . अगर ज्ञान का प्रकाश पाकर कषाय का शमन कर लिया जाय तो वह रसायन हैं । दमन करने से भी उसकी भयंकरता कम हो जाती है। जिसका
शमन कर दिया जाता है, वह शीघ्र उठ कर खड़ा नहीं होता किन्तु जिसका __दमन किया जाता है वह समय की प्रतीक्षा करता है।
. बन्धुओ, इस भूमि पर एक से एक बढ़ कर आत्म विजयी-महापुरुष हुए हैं । वे आत्मविजय को ही परम लक्ष्य और चरम विजय मानते थे, क्योंकि
आत्मविजय के पश्चात् किसी पर विजय प्राप्त करना शेष नहीं रह जाता। उनकी पावन प्रेरणा प्रदान करने वाली प्रशस्तियों और कथाओं से हमारा साहित्य परिपूर्ण है। ये प्रशस्तियां और कथाएं युग-युगान्तर तक मानव जाति . को महान् निधि बनी रहेंगी और उसके समक्ष स्पृहणीय आदर्श उपस्थित करती रहेंगी। जो भव्य जीव आत्माभिमुख होंगे, वे उनसे लाभ उठाते रहेंगे और . अपना कल्याण करेंगे।
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