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- की दृष्टि से देखता है। भगवान महावीर जैसे बोतराग, निर्मल; निष्कलंक,.. :- सर्वहितंकर और परमात्मा को भी विपरीत दृष्टि से देखने वाले मिल जाते हैं ...
तो अन्य के विषय में क्या कहा जाय ?
:विरोधमय दृष्टि से दूसरों की बुराइयां तो दिखेंगी पर अच्छाइयाँ दृष्टि गोचर न होगी। अनादि काल से.. मनुष्य स्वार्थ के चक्र में फंसा है । स्वार्थ में थोड़ी टक्कर लगने से विरोधी भाव जागृत हो जाते हैं । अतएव आवश्यकता इस बात की है कि हम अपने जीवन में तटस्थता, के दृष्टिकोण को विकसित . करें। ऐसा करने से किसी भी वस्तु के गुण-दोषों का- सही मूल्यांकन किया जा सकता है।
लौकाशाह ऐसे व्यक्ति आगे आए जिन्होंने गृहस्थों के लिए भी श्रुत. . .. के अध्ययन का मार्ग खोला। इससे पूर्व बाबा लोगों ने प्रागम-श्रत पर एकाधि.. ...कार कर लिया था। मगर लौकाशाह ने समाज को अंधेरे से बाहर निकाला। • वस्तुस्वरूप को उन्होंने समझा था, इस कारण मार्ग का स्वरूप सामने आया । श्रतज्ञान का अभाव कुछ हद तक दूर हुआ। मगर आज की नयी पीढ़ी श्रुतज्ञान के प्रति उदासीन होती जा रही है। धार्मिक विज्ञान की दृष्टि से कितने प्रकार के जीव होते हैं; तरुण पीढ़ी वाले यह नहीं बता सकेंगे। जहाँ इतनी वात का भी पता न हो वहाँ धर्म एवं शास्त्रों के हार्द को समझे जाने की. क्या प्राशा की जा सकती है ? लौकाशाह ने सोचा कि श्र तज्ञान तो प्रत्येक मानवके लिए आवश्यक है, और लौंकोशाह के कहलाने वाले अनुयायी अाज श्रुतज्ञान के प्रति उपेक्षाशील हो रहे हैं। यह खेदं और विस्मय की ही बात है। ...
धार्मिक संघर्ष के समय साहित्य के विनाश का क्रम भी चला था । जैसे .. सैनिक दल विरोधी पक्ष के खाद्य और शस्त्रभण्डार प्रादि का विनाश करते है, वैसा ही विरोधी धर्मावलम्बियों ने साहित्य का विनाश किया । फिर भी
आज हमारे समक्ष जो श्रुतराशि है, वह सत्य मार्ग को समझने समझाने के लिए पर्याप्त है।
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