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अनेक जानकार व्यक्ति साधना के पथ पर नहीं चलते, परन्तु वे - साधना के महत्व को स्वीकार करते हैं। सच्चे ज्ञान के होने पर यदि बहिरंग क्रिया न भी हो तो अंतरंग क्रिया जागृत हो ही जाती है । ऐसा न हो तो .. .. सच्चे ज्ञान का अभाव ही समझना चाहिए।
: इस प्रकार जीवन को ऊंचा उठाने के लिए ज्ञान और क्रिया, दोनों के - संयुक्त बल की आवश्यकता है । सामायिक साधना में भी यह दोनों अपेक्षित .. हैं । इन दोनों के आधार पर सामायिक के भी दो प्रकार हो जाते हैं- (१) श्रतसामायिक और चारित्र सामायिक।
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.. मुक्तिमार्ग में चलना चारित्रसामायिक है । इसके पूर्व श्र तसामायिक का • स्थान है जिससे जीवन की प्रगति या आत्मिक उत्कर्ष के लिए आवश्यक सही - प्रकाश मिलता है । इसी प्रकाश में साधक ग्रसर होना है और यदि यह प्रकाश : - उपलब्ध न हो तो वह लड़खड़ा जाता हैं।
व्यक्तिगत या सामूहिक जीवन में विकारों का जो प्रवेश हेता है, उसका - कारण सही ज्ञान न होना है । ज्ञान के पाले.क के अभाव में मनुष्य विकारों ... - का मार्ग ग्रहण कर लेता है । इस कुमार्ग पर चलते-चलते वह ऐसा अभ्यस्त हो
जाता है और एक ऐमे ढांचे में ढल जाता है कि उसे त्यागने में असमर्थ बन .. जाता है । ऐसी स्थिति में उसका सही राह पर पाना तब ही संभव है जब किसी : प्रकार उसे ज्ञान का प्रकाश मिल सके। ज्ञानप्राप्ति के लिए आवश्यक है कि मनुष्य नियत्ति रूप स्वाध्याय करे। .....
स्वाध्याय जीवन के संस्कार के लिए अनिवार्य है। स्वाध्याय ही प्राचीन कालीन महापुरुषों के साथ हमारा सम्बन्ध स्थापित करता है और उनके अन्तस्तल को समझने में सहायक होता है। भगवान् महावीर, गौतम और सुधर्मा जैसे परमपुरूषों के वचनों और विचारों को जानने का एक मात्र उपाय स्वाध्याय ही है। आज स्वाध्याय के प्रचार की बड़ी आवश्यकता है और उसके लिए साधकों की मंडली चाहिए । ज्ञानवन के अभाव में त्यागियों के ज्ञानप्रकाश