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[ ४०७ रखकर नहीं। जब पहले से कोई दृष्टि निश्चित करके शास्त्र को उसके समर्थन के लिए पढ़ा जाता है तो उसका अर्थ भी उसी ढंग से किया जाता है । कुरीतियों, कुमार्गों और मिथ्याडम्बरों को एवं मान्यताभेदों को जो प्रश्रय मिला है, उसका एक कारण शास्त्रों का गलत और मनमाना ग्रंथ लगाना है। ऐसी स्थिति में शास्त्र शस्त्र का रूप ले लेता है । अर्थ करते समय प्रसंग आदि कई बातों का ध्यान रखना पड़ता है ।
कोई साहब भोजन करने बैठे। उन्होंने अपने सेवक से कहा - 'सेन्धवस् श्रानय ।' वह सेवक घोड़ा ले प्राया भोजन का समय था फिर भी वह 'सैन्धव' मँगाने पर घोड़ा लाया । खा-पीकर तैयार हो जाने के पश्चात् कहीं बाहर जाने की तैयारी करके पुनः उन्होंने कहा 'सैन्धवम् प्रातयं ।' उस समय सेवक नमक ले श्राया यद्यपि सैन्धव का अर्थ घोड़ा भी हैं और नमक भी; कोष के अनुसार दोनों अर्थ सही हैं । फिर भी सेवक ने प्रसंग के अनुकूल अर्थ न करके अपनी मूर्खता का परिचय दिया । उसे भोजन करते समय 'सैन्धव' का अर्थ 'नमक' और यात्रा के प्रसंग में 'घोड़ा' अर्थ समझना चाहिए । यही प्रसंगानुकूल सही अर्थ है । ऊट-पटांग अथवा अपने दुराग्रह के अनुकूल अर्थ लगाने से महर्षियों ने जो • शास्त्र रचना की है, उसका समीचीन अर्थ समझ में नहीं आ सकता ।
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आन्नद ने अपरिग्रही त्यागी सन्तों को चौदह प्रकार का निर्दोष दान देने... का संकल्प किया, क्योंकि आरंभ और परिग्रह के त्यागी साधु दान के सर्वोत्तम. पात्र हैं । उसने जिन वस्तुओं का दान देने का निश्चय किया, वे इस प्रकार हैं-(१) प्रशन (२) पान (३) खाद्य पकवान यादि (४) स्वाद्य मुखवास चूर्ण आदि (५) वस्त्र (६) पात्र (७) कम्बल (८) रजोहरण (8) पीठ-चौकी बाजौट (१०) पाट (११) औषध- सोंठ, लवंग, कालीमिर्च आदि (१२) भैषज्य बनी बनाई दवाई (१३) शय्या मकान और (१४) संस्तारक - पराल आदि ।
रजोहररण पाँव पोंछने का वस्त्र है, जो धूल साफ करने के काम आता जिससे सचित की विराधना न हो । शय्या मकान के अर्थ में रूढ़ हो गया है।