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... तो महात्मानों ने अपनी गहन एवं रहस्यमय अनुभूतियों को भी प्रकाशित : किया है। उन्होंने हमें बतलाया है कि प्राधियों, व्याधियों और उपाधियों से . मुक्ति चाहते हो तो आत्मसाधना के पथ पर अग्रसर होनो।
दुःख से छुटकारा पाना कौन नहीं चाहता ? मनुष्यों की बात जाने " . दीजिए, छोटे से छोटे कीट भी दुःख से बचना और सुख प्राप्त करना चाहते हैं। .. इसी के लिए वे निरन्तर प्रयास कर रहे हैं। मगर दुःखों से मुक्ति मिलती नहीं
कारण स्पष्ट है दुनियां समझती है कि बाह्य पदार्थों को अपने अधिकार में कर .... - लेने से दुःख का अन्त. या जाएगा। मनोहर महल खड़ा हो जाय, सोने-चाँदी से .....
तिजोरियाँ भर जाएँ, विशाल परिवार जुट जाए, मोटर हो, विलास की अंत्य : .. ... सामग्री प्रस्तुत हो तो मुझे सुख मिलेगा । इस प्रकार पर-पदार्थों के संयोग में ... - लोग सुख की कल्पना करते हैं । किन्तु ज्ञानी कहते हैं- ..........
___ संयोगमूला जीवेन प्राप्ता दुःख परम्परा । ....
संसार के समस्त दुःखो का मूल संयोग है । अात्मभिन्न पदार्थों के साथ - सम्बन्ध स्थापित करना ही दुःख का कारण है । अब आप ही सोचिए कि सुख .. ... प्राप्त करने के लिए जो दुःख की सामग्री जुटाता है, उसे सुख की प्राप्ति कैसे . ... - हो सकेगी ? जीवित रहने के लिए विष को भक्षण करने वाला पुरुष अगर मूढ़ है . " तो सुख प्राप्ति के लिए बाह्य पदार्थों की आराधना करने वाला क्या मूढ़ नहीं ... - है ? मगर अापकी समझ में यह बात कहाँ आ रही है ? आप तो नित्य नये-नये
पंदार्थों के साथ ममता का संबंध जोड़ रहे हैं। यह दुःख को बढ़ाने का प्रयत्न
है। इससे सुख की प्राप्ति नहीं होगी। सच्चा सुख आत्मसाधना में है.। आध्यात्मिक - साधना जितनी-जितनी सबल होती जाएगी, सुख भी उतना ही उतना बढ़ता
जाएगा । आर्त और रौद्र वृत्तियो को मिटाना ही शान्ति और मुक्ति का साधन .: है। शस्त्रविद्या इसमें सफल नहीं होती । शस्त्रविद्या तो रौद्र भाव को बढ़ाने
वाली है ज्यों-ज्यों शस्त्रों का निर्माण होता गया, मनुष्य का रौद्र रूप बढ़ता... गया। रौद्र रूप की वृद्धि के लिए बाज़ तो शारिरिक बल की आवश्यकता भी