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हैं। उसका दूसरा उद्देश्य मानव के अन्तस्तल में धधकती रहने वाली विषय"कषाय की भट्टी को शान्त करना है। ... सामायिकसाधना के सच्चे, गहरे और व्यापक अर्थ को समझा नहीं जा रहा हैं । प्रतिदिन सामायिक करने वालों में भी अधिकांश जन ऊपरी विधीविधान करके ही सन्तोष मान लेते हैं। वे उस साधना को स्पर्श करने का प्रयत्न नहीं करते । उसे सजीव एवं स्फूर्त रूप प्रदान कर जीवनव्यापी नहीं : बनाते । अगर सामायिक साधना हमारे जीवन का प्रेरणास्त्रोत और मूलमंत्र वन जाएं तो उससे अपूर्व लाभ हो सकता है। जीवन में जो भी विषांद, वैषम्य, .. 'दैन्य, दारिद्रय, दुःख और प्रभाव है, उस सब की अमोध औषध सामायिक है। जिसके अन्तःकरण में समभाव के सुन्दर सुमन सुवासित होंगे, उसमें वासना की बदबू नहीं रह सकती। जिसका जीवन साम्यभाव के सौभ्य आलोक से जगमगाता होगा, वह अज्ञान, प्रांकुलता एवं चित्त विक्षेप के अन्धकार में नहीं भटकेगा।
जीवन में अनेक प्रकार की टक्करें लगती रहती हैं, उनसे पूरी तरह वचना संभव नहीं है, किन्तु टक्करें लगने पर भी उनसे आहत न होने का उपाय सामायिक है। आप जानते हैं कि मनुष्यं जवं रंजे की हालत में आता
है तो अपने आपको संसार में सबसे अधिक दुखी मानने लगता है और - श्रादरणीयं का आदर करना एवं वन्दनीय को वन्दन करना भी भूल जाता है। - इस प्रकार विपमता की स्थिति में पड़कर वह दोलायमान होता रहता है और .
अपने कर्त्तव्य का पालन-ठीक तरह नहीं कर पाता है। इससे बचने के लिए ..
और सन्तुलित मानसिक स्थिति बनाये रखने के लिए सामायिक साधना ही ... उपयोगी होती है । जो खुशी के प्रसंग पर उन्मादं का शिकार हो जाता हैं और : दुःख में आपा भूलकर विलाप करता है, वह इहलोक और परलोक दोनों का
नहीं रहता । युद्ध के समय सैनिक यदि घबरा जाता है, धैर्य गदा वैठता है तो - पीछे हट जाता है और यदि सन्तुलित अवस्था कायम रखता है तो शन्नु का
सामना कर सकता है । कोम्बिक मामलों में यदि सन्तुलन बिगाड़ दिया जायः .