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एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता, इस कथन में सत्यता है, मगर इसका अर्थ यदि यह समझ लिया जाय कि धन, पुत्र, कलत्र
आदि के प्रति आसक्ति रखने से भी प्रात्मा में किसी प्रकार की विकृति नहीं हो सकती तो यह अनर्थ होगा।
... स्थानांग सूत्र का प्रथम वाक्य है-'एगे आया।' यदि इसका प्राशय वही समझा जाय जैसाकि आत्माद्वैतवादी वेदान्ती कहते हैं। अर्थात् समस्त विश्व में, सभी शरीरों में, एक ही आत्मा है-प्रत्येक शरीर में अलग-अलग आत्मा नहीं हैं, तो कितना अनर्थ होगा। ..
''आत्मा अजर, अमर, अविनाशी, शुद्ध, बुद्ध एवं सिद्धस्वरूप है, यह निरुपण आपने सुना होगा । क्या इसका आशय यह है कि किसी को साधना - करने की आवश्यकता नहीं हैं ?
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तात्पर्य यह है कि सूत्र के सही अर्थ को समझने के लिए तय दृष्टि की. आवश्यकता होती है । जिन प्रवचन का.एक भी वाक्यः नयतिरपेक्ष नहीं होता। जिस नय से जो बात कही गई है, उसे उसी तय की अपेक्षा समझत्ता चाहिए। दूसरे नय की दृष्टि को सर्वथा सर्व प्रोझल नहीं कर देना चाहिए। यदि ऐसा.. हुआ तो घोर अनर्थ होगा। आज जिन शासन में भी अनेक प्रकार के जो • वितंडावाद चल पड़ते हैं और विभिन्न प्रकार के साम्प्रदायिक मतभेद दृष्टिगोचर " होते हैं, उनका प्राधार अपेक्षा, नयदृष्टि या विवक्षाभेद को न समझता ही है ।
गहराई के साथ नयदृष्टि को न समझने से कलह का वीज़ारोपण होता है। अतएव निष्पक्षभाव से, शुद्ध बुद्धि से. आगम के अर्थ को इस प्रकार समझता.. चाहिए जिससे लौकिक और पारलौकिक कल्याण हो। ........