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मंजरी की लड़की गुणमंजरी भी कोढ़ से ग्रस्त हो गई। वह लड़की गूगी थी। उस काल में, आज के समान गूगों, बहरों और अंधों की शिक्षा की सुविधा . नहीं थी। कोई लड़का इस लड़की के साथ संबंध करने को तैयार नहीं हुआ। गूंगी और सदा बीमार रहने वाली लड़की को भला कौन अपनाता ? ..
एक बार भ्रमण करते हुए विजयसेन नामक प्राचार्य वहाँ पहुँचे। वे । विशिष्ट ज्ञानवान् थे और दुःख का मूल कारण बतलाने में समर्थ थे। वे नगर . के बाहर एक उपवन में ठहरे । शान की महिमा के विषय में उनका प्रवचन. प्रारंभ हुआ। उन्होंने कहा-सभी दुःखों का कारण अशान और मोह है । जीवन : . के मंगल के लिए इन का विसर्जन होना अनिवार्य है। कहा गया है-'....
अज्ञान से दुख दूना होता, अज्ञानी धीरज खो देता। मन के अज्ञान को दूर करो,
स्वाध्याय करो स्वाध्याय करो। कई लोग भयंकर विपत्ति आ पड़ने पर भी धीरज नहीं खोते तो कई साधारण ज्वर आते ही बेटी, बेटे और दामाद को तार-टेलीफोन करने लगते हैं। मृत्यु की विकराल छाया उन्हें अपने कल्पना-नेत्रों से नजर आने लगती है। अज्ञान के कारण मनुष्य अपने शारीरिक, मानसिक एवं कुटुम्ब संबंधी दुःखों को बढ़ा लेता है। इससे बचने का मुख्य उपाय यही है कि ज्ञानाराधना की जाय। ज्ञान ही समस्त बुराइयों को दूर करने का कारण है । ज्ञानाराधना से अपूर्व .. शान्ति और सुख की प्राप्ति होती है सच्चे ज्ञान की ज्योति जब जगती है तो ...
दुःखों के उलूक ठहर नहीं सकते। ज्ञान प्रात्मा का स्वभाव है, अतएव ज्यों-ज्यों . ..उसका विकास होता है त्यों-त्यों विभाव-परिणति विलीन होती जाती है। ...
- कई लोगों में ज्ञानाराधना में विघ्न डालने की वृत्ति पायी जाती है । कई - लोग स्वाध्याय करने वालों का उपहास करते हैं, मगर ताश, शतरंज और
चौपड़ खेलने में समय नष्ट करने वालों की हंसी नहीं करते । किन्तु स्मरण