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__ वीतराग के उपदेश का सुधाप्रवाह दीर्घकाल तक प्रवाहित होता रहे और भव्य जीव उसमें अवगाहन करके अपने निर्मल स्वरूप को प्राप्त कर सके, :जन्म-जरा-मरण के घोर सन्ताप को शान्त कर सकें, और अपनी आन्तरिक प्यास बुझा सकें, इस महान् और प्रशस्त विचार से प्रेरित होकर प्राचार्यों ने . उस वाणी का संकलन, संग्रह और रक्षण किया। भगवान् महावीर की वाणी . सुरक्षित रही तो वह लोगों को कल्याणमार्ग की ओर प्रेरित करती रहेगी। माध्यम कोई न कोई मिल ही जाएगा। इसी उच्च भावना से मुनियों ने उसके - संकलन का भरसक प्रयत्न किया।
प्राचार्य भद्रबाहु स्वामी चौदह पूर्वो के ज्ञाता थे। महामुनि स्थूलभद्र उनके शिष्य बने । किन्तु उनकी एक स्खलना ने ज्ञानार्जन में गतिरोध उत्पन्न कर दिया । दस पूर्वो के अभ्यास को वे समाप्त कर चुके थे।
___ वाचना का नियत समय हुआ । प्रतिदिन की भाँति स्थूलभद्र मुनि गुरु के चरणों में उपस्थित हुए। किन्तु प्राचार्य महाराज ने कहा-वाचना पूर्ण होगई, अब मनन करो।
आचार्य का यह कथन सुनकर आचार्य चौंक उठे। उन्होंने देखा-पाज प्राचार्य का मन बदला हुआ है। उनके मुख पर नित्य की सी वात्सल्य की छाया दृष्टिगोचर नहीं हो रही है । प्राज आचार्य अनमने हैं। _' स्थूलभद्र विचार में पड़ गए। क्या कारण है कि आचार्य ने बीच में .... ही वाचना प्रदान करना रोक दिया। अभी तो चार पूर्वो का ज्ञान प्राप्त करना .. शेष है। किन्तु उन्हें अपनी भूल समझने में देरी न लगी। वे अपने प्रमाद को . स्मरण करके चौंक उठे । साध्वियों,को चमत्कार दिखलाना ही इसका कारण है, यह उन्हें स्पष्ट प्रतीत होने लगा। मगर अब क्या ? जो तीर हाथ से छूट गया, वह क्या वापिस हाथ आने वाला है ? . स्थूलभद्र बड़े ही असमंजस में पड़े थे। उन्होंने लज्जित होते हए, हाथ... जोड़ कर प्राचार्य से निवेदन किया-देव, भूल हो गई है किन्तु भविष्य में