SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 3
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दो बात .. साष्ट्र का प्रत्यक प्राणी सुखाकांक्षी है, दुःख किसी को भी अभीष्ट नहीं। किन्तु . - प्रबल पुण्य और अनुपम पौरुष के बिना सुख की उपलब्धि प्रसंभव मानी गई है, अतः सुखार्थीजनों को पुण्योपार्जन में कभी भी पीछे नहीं रहना चाहिए। यह सुनिश्चित है कि सत्संगति से असीम पुण्य प्राप्त होता है किन्तु सबको सदा सर्वत्र सत्संगति सुलभता से प्राप्त नहीं होती। इसके अभाव में संतवाणी काही. - एकमात्र अवलम्ब रह जाता है जिसके बल से मानव अपने को कल्याण एवं सुख के पंथ पर आगे बढ़ा सके। * संतवचन, अनुभव की कसौटी पर कसा हुआ देदीप्यमान बहुमूल्य कुन्दन के ... तुल्य हैं, जिसका प्रभाव कभी कम नहीं होता और जो सुषमा, गरिमा और महिमा की दृष्टि से भी त्रिकाल अवाधित है। जिसकी विश्वसनीयता और सत्यता पर कभी , कोई अांच नहीं पा सकती। .. श्रद्धय उपाध्याय श्री हस्तीमलजी महाराज के सैलान (मध्यप्रदेश) चातुर्मास के ४५ प्रवचन जो कि "आध्यात्मिक पालोक" के नाम से पहले प्रकाशित होकर पाठकों के हाथ में पहुंच चुके है, प्रस्तुत भाग, उनसे अवशेष प्रवचनों का संग्रह है, जो सेठ प्यारचंदजी रांका (सैलाना के द्वारा संग्रहीत और प्रकाशित होकर अापके सामने है। श्रीमान् रांकाजी के इस साहित्य प्रेम और उदारता का हम शतशः अभिनन्दन करते हैं और आशा रखते हैं कि समाज के अन्य धनी मानी सज्जन भी आपके इस दान धर्मानुराग का अनुकरण कर चंचल लक्ष्मी का सदुपयोग करेंगे। इन प्रवचनों के द्वारा, उपाध्याय श्रीजी पाठकों की रुचि को सांसारिक प्रच्चों से हटाकर उस दिव्य लोक में ले जाना चाहते हैं, जहां रवि शशि का प्रवेश नहीं,
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy