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आत्मा अपने स्वरूप में निमग्न हो गई तो तत्काल अनन्त ज्ञानालोक आविर्भूत हो गया और वे अपने आराध्य के समान बन गए । एक कवि ने कहा है
- चेतन ! तू ही तारसी, तू परमेश्वर रूपः। ........ ... ::: प्रभुजी के गुण गावतां, प्रकटे अात्मस्वरूप ॥ ...
- गौतम ने आत्मा के परमेश्वर रूप का चिन्तन किया। जो सिद्धि तीस - वर्षों की साधना में उन्हें प्राप्त नहीं हुई थी, वह महावीर के निर्वाण के .. पश्चात् स्व-स्वरूप के चिन्तन से प्राप्त हो गई। उनके अन्तस् से ध्वनि निकली-रंज किसका ? दुःख किसका ? वियोग किसका ? किसी भी परपदार्थ के साथ प्रात्मा का योग नहीं होता तो वियोग केसा? इस. चिन्तन से उनकी विकलता दूर हो गई। ... जो वस्तु अलग हो सकती है, वह आत्मा की नहीं है । जो आत्मीय है वह
आत्मा से पृथक् कदापि नहीं हो सकता । जिसका वियोग होता है, वह सब ... -पर-पदार्थ है जिसे आत्मा राग-भाव के कारण अपना समझ लेता है। यह समझ मिथ्या है। जब यह मिथ्या धारणा दूर हो जाती है तब सच्चा प्रकाश
आत्मा में उत्पन्न होता है-हे चेतन ! तू स्वयं ही अपने को तारने वाला है, - तू ही परमात्मा है। परमात्मा का सहारा लेकर उनके स्वरूप का चिन्तन करने - से निज स्वरूप प्रकट होता है । निजी गुणों को प्रकट करने में परमात्मस्वरूप
का चिन्तन एवं गुणगान निमित्त होता है । इससे शुद्ध स्वरूप पर जो पर्दा पड़ा है वह दूर हो जाता है। ... ...इस प्रकार एक भास्कर (महावीर) अस्त हुआ और दूसरे भास्कर का उदय हुआ । गौतम स्वामी केवलज्ञानी हो गए। उनके चारों ज्ञान केवलज्ञान में उसी प्रकार विलीन हो गए जैसे हाथी के पैर में सबके पैर समा जाते हैं। - अनन्त ज्योति में सभी ज्योतियां विलीन हो जाती हैं । अपूर्णता मिट गई। .... : अपूर्णता का कारण क्षमोपशम हैं और जब क्षमोपशम न रहा तो भेद भी
महीं रहा । समुद्र, सरोवर, कप, नदी आदि के जल में भाफ बम जाने के बाद