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[ १६७ वास्तव में श्रावक व्रत ग्रहण करने से जीवन का कोई कार्य नहीं रुकता फिर भी लोग व्रतों से डरते हैं । जब व्रतों की जानकारी रखने वाला भी व्रत ग्रहण से भयभीत होता है तो जो व्रतों के स्वरूप को समीचीन रूप से नहीं जानता वह भयभीत हो तो क्या आश्चर्य है !
लाखों व्यक्ति वीतरागों का उपदेश सुनते हैं मगर उनमें से सैकड़ों भी . प्रतधारी नहीं बन पाये, इसका एक प्रधान कारण भय की भ्रमपूर्ण कल्पना
आनन्द श्रावक ने व्रत धारण किये और पन्द्रह कर्मादानों का त्याग किया, फिर भी उसका संसार व्यवहार बन्द नहीं हुआ। इस तथ्य को समझकर गृहस्थों को श्रावक के व्रतों से डरना नहीं चाहिये । इन कर्मादानों में से विष वाणिज्य का निरूपण किया जा चुका है। अब केश वाणिज्य के विषय में प्रकाश डाला जाता है।
• (१०) केस वाणिज्जे (केशवाणिज्य)-'केशवाणिज्य' शब्द से केशों का व्यापार करना जान पड़ता है परन्तु इसका वास्तविक अर्थ है-केश वाले प्राणियों का व्यापार । किसी युग में दासों और दासियों के विक्रय की प्रथा प्रचलित थी। उस समय मनुष्यों को बेचा और खरीदा जाता था। मध्ययुग में कन्या विक्रय का रिवाज चालू हो गया। धनलोलुप लोग कन्या के बदले में कुछ रकम लिया करते थे, जिसे रीति के पैसे कहते थे। आज वरविक्रय होने लगा है।
जिसे बालिका के बदले रकम लेने का खयाल हो वह भला बालिका का क्या हित सोच सकता है ? और जो अपनी अंगजात बालिका का ही हित अहित नहीं सोचता वह अन्य प्राणियों का हिताहित सोचेगा, यह अाशा रखना दुराशा मात्र ही है।
लालच के वशीभूत होकर केश वाले भेड़ आदि पशुओं को बेचना भी केशवाणिज्य के अन्तर्गत है। जिसका एकमात्र लक्ष्य मुनाफा कमाना होगा वह इस बात का शायद ही विचार करेंगा कि किसके हाथ बेचने से पशु को कष्ट