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रूपाकोशा की एक मात्र अभिलाषा मुनि को संयम निष्ठ बनाने की थी। उनके मन में जो अभिमान का विष घुल गया था, उसे वह निकाल फेंकना वाहती थी। अब तक की घटनाएं उसी की भूमिका थी।
- संयम से च्युत होते हुए साधक को धर्म में स्थिर करना सम्यक्त्व का __एक प्राचार माना गया है । इस प्राचार का पालन करने वाला अपने और
दूसरे के कल्याण का कारण बनता है। .. . .
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