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[ १५ ] ८ कन्याएं लक्ष्मण को दी जिन्हें देशाटनकी अवधि पर्यन्त वहीं रखने का आदेश दिया।
राजा वालिखिल कथा प्रसंग राम-सीता और लक्ष्मण वहां से विदा होकर कूपचण्ड उद्यान में पहुंचे जहाँ सीता को भूख प्यास लग गई। लक्ष्मण सरोवर की पाल पर गया, जहां राजकुमार पहले से आया हुआ था। राजकुमार के पुरुष लक्ष्मण को बुला ले गए और सम्मानपूर्वक राजकुमार ने परिचय पूछा तो लक्ष्मण ने कहा मेरे भ्राता बाहर बैठे है, उनके पास जाने पर सारी वातं करूंगा। राजकुमार ने रामको बुलाकर आदर पूर्वक भोज नादि से भक्ति की फिर राजकुमार ने कहा-इस नगरी मे वालिखिल
और उसकी पटरानी पृथ्वी राज्य करते थे। एक बार राजा को युद्ध में म्लेच्छाधिप बन्दी बनाकर ले गये तब राजा सीहोदर ने कहा कि गर्भवती रानी के यदि पुत्र होगा तो उसे राज्य दिया जायगा। रानी के मैं पुत्री हुई पर राज्य की रक्षा के लिए मुझे पुत्र घोपित कर कल्याण माली नाम रखा गया। मेरी माता और मन्त्री के सिवा इस भेद को कोई नहीं जानता। मुझे पुरुष वेश पहना कर राजगद्दी पर बैठा दिया। मैने यह गुम बात आपके समक्ष इसलिए प्रकट की है कि अब मैं तरुणी हो गई, आप कृपया मुझे अंगीकार करें। लक्ष्मण ने कहाकुछ दिन तुम पुरुष वेश में राज्य संचालन करो, तुम्हारे पिता को हम विन्ध्याटवी जाकर म्लेछाधिप से छुड़ालाते हैं। इसके बाद राम सीता
और लक्ष्मण विन्ध्याटवी की ओर रवाना हुए। सीता ने कौए के शकुन से भावी विजय की सूचना दी। विन्ध्याटवी पहुँच कर लक्ष्मण