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[ १२ ] उनके विना तुम्हें राज शोभा नहीं देता। कैकयी को साथ लेकर भरत राम की शोध में निकला। गंभीरा पार होकर विषम वन में रामचन्द्र जी के पास जा पहुंचा और घोड़े से उत्तर कर चरणों में गिर पड़ा राम ने उन्हें आलिंगन और लक्ष्मण ने सन्मानित किया। भरत ने अश्रुपूर्ण नेत्रों से प्रार्थना की कि-आप मेरे पितृतुल्य हैं, अयोध्या चल कर राज्य कीजिये मैं आप पर छत्र व शत्रुघ्न चामर धारण करेगा । लक्ष्मण सन्त्री होंगे! इतने में ही कैकयी रथ से उतर कर आ पहुंची और पुत्रो को हृदय से लगा कर कहने लगी-मेरा अपराध क्षमा कर अयोध्या का राज सम्भालो! पर रामचन्द्र ने कहा-हम क्षत्रिय हैं, वचन नहीं पलटते । भरत को राज्य करने की आज्ञा देकर रामने सबको वापस लौटा दिया।
अवन्ति कथा प्रसंग राम लक्ष्मण और सीता कुछ दिन भयानक अटवी में रह कर क्रमशः चलते हुए अवन्ती देश आये। एक शून्य नगर को देख कर उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ, जहां धन, धान्य, दुग्ध, गाय, भैस आदि सब विद्यमान थे पर मनुष्य का नाम निशान नहीं था। राम, सीता शीतल छाया में बैठे और लक्ष्मण जानकारी प्राप्त करने के लिये दूर से आते हुए उदास पथिक को बुला कर राम के पास लाया। राम के पूछने पर उसने कहा
यह देश दशपुर का एक नगर है, इसका सूना होने का कारण यह है कि यहां वजंघ नामक न्यायी राजा राज करता था जिसे शिकार की बुरी लत लगी हुई थी। एक दिन राजा ने एक गर्भवती