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[ ८ ] को नगर में प्रवेश कराया। भामण्डल ने पवनगति विद्याधर को मिथिला भेजा और माता-पिता को बधाईपूर्वक विमान मे आरूढ़ कर . अयोध्या बुला लिया। माता-पिता के चरणों में नमस्कार कर सारा वृत्तान्त सुनाया, सब लोग परस्पर मिलकर आनन्दित हुए। दशरथ के आग्रह से पांच दिन अयोध्या में रह कर जनक राजा भामण्डल सहित मिथिला आये, उत्सव-महोत्सव पूर्वक कुछ दिन माता पिता के पास रह कर भामण्डल पिता की आज्ञा से रथनेउरपुर चला गया।
राज्याभिषेक की कामना और कैकेयी की वर याचना
एक दिन राजा दशरथ पिछली रात्रि में जग कर वैराग्य पूर्वक चिन्तन करने लगा कि विद्याधर चन्द्रगति धन्य है जो संयम स्वीकार कर आत्म साधन मे लग गये। मैं मन्दभाग्य अभी भी गृहस्थी में फंसा पडा हूँ, क्षण-क्षण मे आयु घट रही है और न मालुम कब क्षय हो जायगी। अतः अव रामचन्द्र को राज्य सम्भला कर मुझे भी संयम ग्रहण करना श्रेयस्कर है। उसने प्रातः काल सबके समक्ष अपने विचार प्रकट किये। और सबकी अनुमति से राम के राज्याभिषेक
का मुहुर्त देखने लगे। इतने ही में कैकयी राजा के पास गयी और __ यह सोच कर कि राम लक्ष्मण के रहते मेरे पुत्र को राज नहीं
मिलेगा-राजा से अपना अमानत रखा हुआ वर मांगा। उसने कहा-राम को वनवास और भरत को राज्य देने की कृपा करें। राजा दशरथ यह सुन कर बड़ी भारी चिन्ता में पड गये। रामचन्द्र ने आकर पिता को चिन्ता का कारण पूछा तो उन्होंने कैकयी के वर की वात बतलाते हुए इस प्रकार पूर्व वृतान्त सुनाया