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[ ५ ] ने कहा-दशरथ राजा के पुत्र रामचन्द्र को सीता दी जा चुकी है, अतः अब यह अन्यथा कैसे हो सकता है ? विद्याधरों ने कहाखेचर के सामने भूचर की क्या बिसात है ? राम यदि देवाधिष्ठित धनुप चढा सकेगा तो सीता उसे मिलेगी अन्यथा विद्याधर ले जायेंगे! विद्याधर लोग सदल बल मिथिला के उद्यान में आ पहुंचे। राजा जनक भी खिन्न हृदय से अपने महलों में आये और रानी के समक्ष कहा कि राम यदि बीस दिन के अन्दर धनुप चढा सका तो ठीक अन्यथा सीता को विद्याधर ले जावेंगे। सीता ने कहा-आप कोई चिन्ता न करें, वर राम ही होगें। विद्याधर लोग अपनी इज्जत खो "कर जायेंगे।
धनुष-भंग आयोजन तथा सीता विवाह मिथिला नगरी के बाहर 'धनुप-मण्डप' बनवाया गया। राजा दशरथ अपने चारों पुत्रों के साथ आ पहुचे। मेघप्रभ, हरिवाहन, चित्ररथ आदि कितने ही राजा आये थे। धाय माता ने सीता को सबका परिचय दिया। मन्त्री द्वारा धनुष चढ़ाने का आह्वान श्रवण कर राजा लोग बगलें झांकने लगे। अतुलबली राम सिंह की तरह उठे और तत्काल धनुष चढ़ा दिया। टंकार शब्द से पृथ्वी और पर्वत कॉपने लगे, शेषनाग विचलित हो गये। अप्सराएं कांपती हुई अपने भर्ताओं से आलिंगित हो गई। आलान स्तंभ उखड़ गये, मदोन्मत्त हाथी छुटकर भग गए। थोड़ी देर में सारे उपद्रव शान्त हो गए आकाश में देव सुंदुभि बजी, पुष्पवृष्टि हुई सीता प्रफुल्लित होकर रामचन्द्रके निकट आ पहुंची। दूसरा धनुष लक्ष्मणने चढाया, विद्या