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[ ३ ] - विरक्त होकर साधु हो गया और तपश्चर्या के प्रभाव से मरकर स्वर्गवासी हुआ। राजकुमार अहिकुण्डल ने धर्म सुना और साधु संगति से सदाचारी जीवन बिता कर वैदेही की कुक्षि में पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ जिसे पूर्वभव का वैर स्मरणकर मधुपिंगल के जीव देव ने जन्मते ही अपहरण कर लिया। देव का विचार था कि इसे शिला पर पछाड़
कर मार दिया जाय पर मन मे दयाभाव आ जाने से वह ऐसा न __ कर सका और उसे कुण्डल हार पहना कर वैताढ्य पर्वत पर छोड़
दिया । चन्द्रगति नामक विद्याधर ने जब उसे देखा तो उसने तत्काल ग्रहण कर रथनेउरपुर ले जाकर अपनी भार्या अंशुमती को देकर लोगों मे प्रसिद्धि कर दी कि मेरी स्त्री गूढगर्भा थी और उसके पुत्र उत्पन्न हुआ है। विद्याधर लोगों ने पुत्र जन्मोत्सव किया और उस बालक का नाम भामंडल रखा। वह कुमार वैताठ्य पर्वत पर चन्द्रगति के यहाँ वड़ा होने लगा।
सीता का नाम संस्करण तथा पूर्वानुराग इधर जब रानी वैदेही ने पुत्र को न देखा तो वह मूर्छित होकर नाना विलाप करने लगी। राजा जनक ने उसे समझा-बुझा कर शात किया और पुत्री का जन्मोत्सव मनाकर उसका नाम सीता रखा। राजकुमारी सीता पाँच धायो द्वारा प्रतिपालित होकर क्रमशः यौवन अवस्था में प्रविष्ठ हुई। सीता लावण्यवती और अद्वितीय गुणवती थी। राजा जनक ने उसके लिए वर की शोध करने के हेतु मंत्री को भेजा। मंत्री ने राजा से कहा कि अयोध्या नरेश दशरथ के चार पुत्र है जिनमें कौशल्यानंदन रामचंद्र अपने लघुभ्राता सुमित्रा