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( २७८ ) हुँ सीलवंत नहीं तिसो, मुझ पोतइ बहु ससारो रे। पणि सीलवंतना सलहता, मुझ थामी सही निस्तारो रे ॥१६॥ सी० चपल कवीसरना कह्या, एक मननइ ए वचन एवेई रे । कविकल्लोल भणी कहइ, रसना वाह्या पणि केई रे ।। १७ ।। सी० अछो अधिको मइ कह्यो, कोई विरुध वचन पणि होई रे। तो मुझ मिच्छामि दुकडं, संघ साभलिज्यो सह कोई रे ॥२८॥सी० त्रिहि हजारनइ सातसइ, माजनइ ग्रन्थनो मानो रे। लिखतां नइ लिखावतां, पामीजइ न्यान प्रमाणो' रे॥१४।। सी० । श्री खरतरगच्छ माहिदीपता, मेड़तानगर मझारो रे । गोत्र गोलछा गहगहइ सामग्रीमइ सिरदारो रे ।।२०।। सी० नगर थटइ घणो नामगउ, अतवार घणउ दरवारउ रे। गुरुगच्छ ना रागी घण, उत्तम घरनो आचारो रे ।। २।। सी० पुत्ररतन रायमलतणा, ते ल्यइ लखमी नउ लाहो रे। अमीपालनइ नेतसी, भलउ भत्रीज राजसी साहो रे ।।२२।। सी० सीतारामनी चउपई, एहनइ आग्रह करि कीधी रे। देसप्रदेस विस्तरी, ज्ञान बुद्धि लिखवंता लीधी रे।। २३ ।। सी० श्री खरतरगच्छ राजीया, श्रीयुगप्रधान जिनचन्दो रे। प्रथम शिष्य श्रीपूज्यना, गणिसकलकंद सुखकंदो रे ॥ २४ ॥ सी० समयसुंदर शिष्य तेहना, श्री उपाध्याय कहीजइ रे। तिण ए कीधी चउपई, साजण माणस सलहोजइ रे ॥२५सी० वर्तमान गच्छना धणी, भट्टारक श्री जिनराजो रे । जिनसागरसूरीसरू, आचारिज अधिक दिवाजो रे ॥२६।। सी० १-प्रधानो रे।