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( २७५ ) केतलाएक भव करी, पुष्करइ त्रोजइ दीप । के० महाविदेह माहे तिहा, पुर पदम' सुरपुर जीपि ||१७|| के० तिण नगरी चक्रवति हुस्यइ, सुख पामिस्यइ तिहा सोय । के० तीर्थक्कर पणि तिण भवई, पामिस्यइ पदवी दोय ॥१८॥ के० इम केवलि वाणी सुणो, करि जोडि करि परणाम | के. हियइ अति हरषित थई, सीतेंद्र गयो निज ठाम ।।१६।। के० श्रीरामचंद मुगतइं गया, पामियो अविचल राज । के० सुख लाधा अति सासता, सारीया आतम काज ॥२०॥ के० लखमण नई रावण भणी, ए कही छट्ठी ढाल । के० समयसुंदर वंदना करई, तीर्थङ्कर नई त्रिकाल ।।२।। के०
सर्वगाथा ||३२०॥
दूहा ८ हिव सीतेंद्र तिहां रहइं, सुख भोगवतो सार । वावीस सागर आउषु, पूरु करई अपार ॥११॥ तीर्थङ्कर कल्याणके, आवी करइ अनेक । उच्छव महुच्छव अतिघणा, वारू चित्त विवेक ।।२।। तिहाथी चवि नइ पामिस्यई, उत्तम कुलि अवतार । तोर्थङ्कर वसुदत्त तसु, देस्यइ दीक्षा सार ।।३।। गणधर थास्यइ तेहनो, सुर नर नई वंदनीक। सिव सुख लहिस्यइ सासता, प्रथम उहा पूजनीक ।।४।। १-रतनचित्रा।