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[ २५ ] वर्णित है। ग्रन्थ ६ खण्डों में विभक्त है। इसकी प्रति लीबडी के ज्ञानभण्डार में १८१ पत्रों की हैं। सम्भवतः राजस्थानी जैन रामचरित ग्रन्थों में यह सबसे बड़ा है। ग्रन्थकार बड़े वरागी एवं संयमी थे। इनकी चौवीसी आदि रचनाए सभी प्राप्त है।
२१-सीता चउपई-तपागच्छीय चेतनविजय ने संवत् १८५१ के वैसाख सुदि १३ को वंगाल के अजीमगंज में इसकी रचना की। इनके अन्य रचनाओं की भाषा हिन्दी प्रधान है। प्रस्तुत चउपई की १८ पत्रों की प्रति बीकानेर के उ० जयचन्दजी के भंडार व कलकत्ते के श्री पूर्णचन्द नाहर के संग्रह में है। परिमाण मध्यम है।
२२-रामचरित-ऋषि चौथमल ने इस विस्तृत ग्रन्थ की रचना की। श्री मोतीचन्दजी के संग्रह मे इसकी दो प्रतियां पत्र ६५ व ८४ की है। जिनमें से एक में अंत के कुछ पत्र नहीं है और दूसरी में अंत का पत्र होने पर भी चिपक जाने से पाठ नष्ट हो गया है इसका रचनाकाल सं० १८६२ जोधपुर है। इनकी अन्य रचना पिदत्ता चौपाई संवत् १८६४ देवगढ़ (मेवाड़) में रचित हैं। प्रारम्भिक कुछ पद्यों को पढ़ने पर ज्ञात हुआ कि समयसुन्दर के सीताराम चौपाई के कुछ पद्य तो इसमे ज्यों के त्यों अपना लिये है। ___२३-राम रासो-लक्ष्मण सीता बनवास चौपाई-मृपि शिवलाल ने संवत् १८८२ के माघ वदि १ को बीकानेर की नाहटों की वगीची में इसकी रचना की, इसमें कथा संक्षिप्त है । १२ पत्रो की प्रति यति मुकनजी के संग्रह में है।
२० वीं शताब्दी २४-राम सीता ढालीया-तपागच्छीय नृपभविजय ने संवत्