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( २२१ ) कहइ मात बालक छो तुम्हे, तुम्ह आधार वइठां छां अम्हे। चउकडिया गाडा नो भार, बछड़ा किम निरवहइ निरधार ॥३॥ तिण कारण तुम्हे बइठा रहउ, मातो नो जीवित निरवहउ । कहइ पुत्र तू बोलइ किसुं, एहवं वचन दयामणि जिसु ॥४|| बडा लहुडा नो किसो विचार, लहुडा पणि करई काज अपार । अंकुस लघु पणि गज वसि करइ, लहुडउ वजू पणि गिरि अपहरइ ॥५॥ दीवउ लहुडो पणि तम हरइ, साप मुंबइ तो माणस मरइ । गज भाजइ हरि नो छावडो, तेज प्रताप बडो तेवडो lll पुत्र तणी सुणि एहवी वात, आसीस दीधी पुत्र नई मात । करि संग्राम नई जस पामिज्यो, कुसले खेमे घेरि आविज्यो । कुमरे स्नान मज्जन सहु कीया, भोजन करि आभ्रण पहिरीया। जरह जोत नई सिरि ऊपरि टोप, रण चढता रो बाध्यो कोप | माता नई कीधो परणाम, लीधो सिद्धि तणो वलि नाम। रथ ऊपरि वइठा ते सुर, बजडाया चढता रण तूर ।।६।। दिवस अढी ना चाल्या गया, वनजंघ नई भेला थया । अणीए अणी कटक ये मिल्या, माहोमाहि सुभट ऊछल्या ॥१०॥ सवल थयो भारथ संग्राम, तेह मइ वर्णव्यो घणी हि ठाम । त्रुटि पड्या लव अंकुस वेइ, सत्रु सुं सवलो वेढि करेइ ।।१।। सिंहनाद नासइ गज घटा, तिम नाठा वयरी उतकटा। अज्ञात वंस बल देखो रही, कुमर कहइ का जावउ वही ।।१२।।
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