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[ २३ ] परिमाण समयसुन्दर के सीताराम चौपाई के करीव का है। इसकी २ हस्तलिखित प्रतियां हमारे संग्रह में हैं।
१३-रामचन्द्र चरित्र-लोंका गच्छीय त्रिविक्रम कवि ने संवत् १६६६ सावण सुदि ५ को हिसार पिरोजा द्रंग में इसकी रचना की। 'त्रिसष्टि शलाका पुरुष चरित्र' के आधार से नन खण्डों एवं १३५ ढालों मे यह रचा गया है। इसकी १३० पत्रों की प्रति श्री मोतीचन्द जी के संग्रह में है। जिसके प्रारम्भ के २५ पत्र न मिलने से तीस ढाले प्राप्त नहीं है। इस शताब्दी के प्राप्त ग्रन्थों में यह सबसे बड़ा है।
१८वीं शताब्दी १४-रामायण-खरतरगच्छीय चारित्रधर्म और विद्याकुशल ने संवत् १७२१ के विजयदशमी को सवालक्ष देस के लवणसर में इसकी रचना की। प्राप्त जैन राजस्थानी रचनाओं मे इसकी यह निराली विशेषता है कि कवि ने जैन होने पर भी इसकी रचना जैन ग्रन्थों के अनुसार न करके वाल्मीकि रामायण आदि के अनुसार की है :
वाल्मीक वाशिष्टरिसि कथा कही सुभ जेह ।
तिण अनुसारे राम जस, कहिये घणो सनेह ।। सुप्रसिद्ध वाल्मीकि रामायण के अनुसार इसमें वालकाण्ड उत्तरकाण्ड आदि सात काण्ड है। रचना ढालबद्ध है। ग्रन्थ का परिमाण चार हजार श्लोक से भी अधिक का है। सीरोही से प्राप्त इसकी एक प्रति हमारे संग्रह में है।
१५-सीता आलोयणा-लोंका गच्छीय कुशल कवि ने ६३ पद्यों में सीता के बनवास समय में किए गए आत्म विचारणा का इसमें