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( १६१ ) सुभट विद्याधर सहु मिल्या, सहु हरण्या हे नगरी नर नार। ढोल दमामा दुडबड़ी, भेरि वाजइ हे भला भुंगल सार ॥ १४ ॥ अ० ताल कंसाल नइ बांसुली, सरणाई हे चह चहइ सिरिकार । सर मंडल मादल घुमइ, वीणा वाजइ हे झालरि झणकार ॥ १५॥ अ० बत्रीस बद्ध नाटक पडइ, गीत गायइ हे गुणियण अतिचंग। बंदी जण जय-जय भणड, रुडी बोलइ हे विरुदावली रग ॥१६ ।। अ० आकास मारिग आवता, देखीनई हे लोक हरप अपार । पूरणकंभ ले पदमिनी, बधावइ हे गायइ सोहलउ सार ।। १७ ॥ अ० गउख उपरि चडी गोरडी, कहइ केई हे देख उ ए रामचंद । ए लखमण केई कहइ, ए सुग्रोव हे ए विभीषण नरिंद ॥ १८ ॥ अ० ए हनुमत सीता सती, विसल्या हे ए लखमण नारि । बडवखती केई कहइ, वे भाई हे राम लखमण बलिहारी ।। १६ ।। अ० अटवी मइ गया एकला, पणि पामी हे रिधि एह अनंत । के कहइ सोता सभागिणी, चूकी नहि हे रावण सु एकंन ।। २०॥अ० धन्य विसल्या केई कहइ, जीवाड्यो हे जिण लखमण कंत । हनुमंत धन्य केई कहइ, सीता नइ हे कह्यो प्रियु विरतंत ।।२१।। अ० पुष्पविमान थी ऊतरी, साभलता हे इम जन सुवचन्न । पहुता माता मंदिरई, मा दीठा हे बेउ पुत्र रतन्न ।। २२ ।। अ० सौमित्रा अपराजिता, केकई हे थयो आणंद ताम । ऊठीनइ ऊभी थई, पुत्रे कीधउ हे माता चरण प्रणाम ।। २३ ।। अ० माता हियडई भीडिया, बेटा नइ हे पुचकास्या बोलाइ । बहू सासू ने पगे पड़ी, कहइ सासू हे पुत्रवंती तूं थाइ ॥ २४ ॥ अ०