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( १६६ ) वहुरूपणी विद्या थई तड, तेज एहनो कुण सहइ । ते भणी करिस्यइ विघन एहनइ, न्याय धरम माहि जे रहई ।।२७॥ देव भणई लखमण अणी, प्रजालोक नई मूकोजी। वीजउ जे रुचईते करई, न्याय धरम थी म चूकोजी ।। म चूक धरम थकी करउ सहु, इम कही गया सुरवरा । हिव रामचंद उपाय करिस्यइ, मुँकिस्य सेवक खरा ।। ए खंड छठ्ठो थयो पूरो, सात ढाल सोहावणी । कहइ समयसुंदर सील पालो, देव भणई लखमण भणी ॥२८॥
सर्वगाथा ||४४४|| इति श्री सीताराम प्रवधे राम रावण युद्ध, विमल्या कन्या समुद्धत, लखमण शक्ति, रावण समाधारित बहु रूपिणी विद्यादि वर्णनों नाम षष्ठः खण्ड : समाप्त :
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खाड ७
दूहा २२ सात क्षेत्र मिलइ सामठा, तउ सगला सुख होइ। तिण कारणि कहुँ सातमो, खंड सुणो सहु कोय ॥१॥ हुँ नहि थातउ आखतो, जोडंतो ए जोड। रामायण मोटा हुवई, सुणिज्यो आलस छोडि ।।२।। अंगद प्रमुख कुमर घणा, हय गय रथ आरुढ । रांवण नइ खोभाविवा, मूक्या राम अमूढ ।।३।। पइठा लंका माहि ते, करता कोडि किलेस । निरख्यो रावण भुवन तिहा, अति दुरगम परवेस ॥ ४ ॥