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[ १८ ] प्रसिद्धि के बाद शक्ति उपासना का स्वरूप ही कुछ बदल गया। प्राचीन शक्ति रूपिणी देवी सुडा, चामुंडा आदि के प्राचीन मन्दिर' जोधपुर राज्य में प्राप्त हैं। विशेषतः सुंडा लामक पर्वत और ओसिया सोजत आदि के मन्दिर उल्लेख योग्य हैं। ओसियां की चामुंडा, जैन श्रावकों में सच्चिका देवी के रूप में मान्य हुई। कृष्ण भक्ति का भी राजस्थान में अच्छा प्रचार रहा है, राजघरानो व विलासप्रिय जनता की रुचि तो उस ओर होना स्वाभाविक ही थी।
राजस्थान के अनेक क्षत्रिय राजवंश अपने को रामचन्द्रजी के, वंशज मानते हैं। सुप्रसिद्ध राठौर सीसोदिया आदि सूर्यवंशी रामचन्द्रजी से अपनी वशावली जोड़ते हैं। राजस्थान का प्रसिद्ध प्रतिहार वंश अपने को रामचन्द्रजी के अनुज लक्ष्मण का वंशज मानता है। इस रूप मे तो राजस्थान में मर्यादा-पुरुपोत्तम रामचंद्र का महत्व बहुत अधिक होना ही चाहिये। किराडू आदि स्थानों में रामावतार की मूर्तियाँ १३वी १४वीं शताब्दी की मिली है। और ११वीं, १२ शताब्दी के देवालयों मे भी रामायण सम्बन्धी घटनाएँ उत्कीर्णित मिलती है
और उन से राजस्थान में राम कथा के प्रचार व लोक प्रियता का पता चल जाता है।
राजस्थान के लोक गीतों में जो राम कथा सम्बन्धी अनेक गीत मिलते हैं, उनसे भी रामकथा की लोकप्रियता का परिचय मिलने के साथ-साथ कुछ नए तथ्य भी प्रकाश में आते है। उदाहरणार्थ-- सीता के वनवास में उसकी ननद कारणभूत हुई इस प्रसंग के गीत जैसे अन्य प्रान्तों में मिलते है वैसे ही राजस्थान में भी प्राप्त है।