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काचित नागे इम कहर, ए बात तुज वसाण । मत दिव मुम रंडापणो, जयश्री लहे. सुजाण ||१६|| काचित नारो इम काड, रे कालुया केकाण । भर रण माहे भेलिजे, घा वाजता समांण || १७ ॥ काचित नारी उम कहर, भागउ नुण्यो वर्याण। तउ सगपण ए आपणई, तुं भाइ हु भयणि || १८ ।। काचित नारी उम कहइ, रण तूं भूमि मरीसि । अपछर मइ मुझ ओलखे, हुँ तुझ वली वरीमि ।। १६॥ कचित नारी इम कहइ, विरह खमेसि हुँ कम । प्रीतम गलि विलगी रही, गज गलक कमलिनी जेम ॥ २० ॥ काचित नारि उम कहइ, भागा नहीं भय कोउ। जिम तिम आवे जीवतउ, सुख भोगवस्यां दोइ ॥२१॥ काचित नारी इम कहइ, जिम झूम झूमार । जेम पवाड़े गाइजई, ले पडिजे सिरदार ।। २२।। सुभट कहइ सुणि कामिनी, म करउ अम्ह असूर । अम्ह पहिली लेजाइस्य, जस कोई मत सूर ।। २३ ।। सुभट तिके ज सराहियर्ड, जे रण पहिलो भेलि। सेना भांजइ सत्रुनी, अणिए अणिए मेलि ॥२४॥ अरि करि दंत उपरि चडी, हणइ ऊपरि सिरदार । धड़ विण घा मारइ धसी, ते साचा झूझार ॥ २५ ॥ एक जोर अमरस तणउ, बीजउ अस्त्री प्रेम । मांहो मांहि भाट भडि, हुई थोडी-सी एम ॥ २६ ॥