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[ १६ ] निबंध इसके सामने फीके मालूम पड़ते हैं। एक विदेशी व्यक्ति द्वारा भारतीय रामचरित पर इतना विशद प्रकाश डालना वास्तव में बहुत ही प्रशंसनीय एवं अनुकरणीय कार्य है। इस ग्रन्थ का अभी परिवर्द्धित सस्करण भी प्रकाशित हो चुका है। राम भक्ति-सम्प्रदायों व उनके साहित्य के सम्बन्ध में दो तीन महत्वपूर्ण ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं।
वाल्मीकि रामायण भारत के सांस्कृतिक इतिहास के निर्माण में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। जोधपुर के डा० शांतिस्वरूप व्यास ने 'वाल्मीकि रामायण में भारतीय संस्कृति शीर्पक थीसिस लिखकर सराहनीय कार्य किया है। इस सम्बन्ध में उनके दो महत्वपूर्ण ग्रंथ सस्ता-साहित्य मंडल, नई दिल्ली से प्रकाशित हो चके है। मैंने कामिल बुल्के के उक्त ग्रन्थ को भी पढ़ा तो देखा कि उसमें गुजराती के एक-दो साधारण रामचरित्र सम्बन्धी ग्रंथों का उल्लेख आया है पर राजस्थानी भाषा के रामचरित सम्बन्धी ग्रंथ उनकी जानकारी में नहीं आए। अतः मैंने इस विषय को अपने शोध का विषय बनाया और हर्प की बात है कि मुझे अच्छी सामग्री प्राप्त हुई। मैं अपने शोध के परिणाम को विद्वानों के सम्मुख उपस्थित कर रहा हूं। यह लेख 'राजस्थानी भाषा में राम चरित' की सामग्री का परिचय देने वाला ही होगा। उन ग्रन्थों का स्वतन्त्र अध्ययन करके विशद विवेचन करना तो एक शोध प्रवन्ध का ही विषय है। डा० कन्हैयालाल सहल ने प्रो० फूलसिंह चौधरी को इस विषय में मार्ग दर्शन लेने के लिए मेरे पास भेजा था और कुछ कार्य उन्होंने किया भी था पर वे अपना शोध प्रबंध पूरा नहीं कर पाये।