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ढाल १
। राग रामगिरी ।। 'भणइ मदोदरी दैत्य दसकध सुणि' ए गीतनी ढाल । अथवा चब्यउ रण जूमिवा
चडप्रद्योत नृप-ए बीजा प्रत्येक्वुद्ध ना खडनी, ढाल । सुणउ श्रीराम लंकापुरी छइ जिहां, बदइ विद्याधरा हाथ जोड़ी। दैत्य रावण तिहा राय अति दीपतो, कोइ न सकई तसुमान मोडी | लवणनामइ समुद्र माहि राक्षसतणो, दीप एक देव मोटउ सुणीजई। सात जोयण सयांते तेह पिहुलप्पणइ, इहा थकी दूरि तेतो कहीजड ।२। तेहमाहे त्रिकूटनाम परवत तिहीं, पांच जोयण सयापिहुलमान । बलिय नव जोयण उंचपण तेहनो, तेह उपरि लंकापुरी थान ||३|| तेथि परचंड राजा दसानन अछई, तेह त्रैलोक्य कंटक कहावई। नवग्रह नेण सेवक कीया निजतणा, विधि तणई पासि कोद्रदलावइ ।। वलि विभीषण कुंभकर्ण नृप सारिखा, जेहनइ भाई जगमंइ वदीता। अतिसवल इंद्रजितइ मेघनाद सरिषा', सुभट पिण तेहना किण न जीता। विषमगढ़ नालिगोला विषम भूमिका।।
वलि विपम चिहुं दिसइ समुद्र खाई । अभंग भड अतुलबल कटक अक्षौहिणी
प्रथमथी कुण सकइ तेथि जाई॥६॥ सु० जे तुम्हारई रुचइ ते करो हिव तुम्हे, तेहनइ आज कोई न तोलई। दैत्य रावण तणी बात सगली सुणी, लखमणा कुमर तब एम बोलइ ७
१-अगना