________________
( १२४ ) मल्लि तीरथ तणा वीसपाटां तणी', कोडि षट साध सीधा संथारइ । कोडि त्रिण साधनी वीसमा जिन तणी, मुगति गई बात सहुको सकारइ एक कोडि साध मुगति गया नमितणा, इणिधणी कोडिवलि सिवनिवासी नाम ए कोडिसिल तेणि कारण कही, ए सहु वात प्रकरण प्रकासी ॥२०॥ वाम भुजदंड करि प्रथम वासुदेव ते, कोडिसिल गगनि उंचीउपाडई ।। सीस वोजइ त्रिजई कण्ठतांई करी, उर लगी जोर चउथउ दिखाडई। हृदय लगि पांचमो करई छठो कडई, सातमो साथलां सीस आणइ आठमो जानु लगि एम नवमो वली, भूमि थी आंगुला च्यार तांणइ । कोडिसिल पासि कोहुको मिल्यो आविनइं,लखमणाकुमर नवकारसमरी वाम भुजदंड सू कोडिस्सिलइ उद्धरी, धन्य हो धन्य कहई अमर अमरी। देवता फूलनी वृष्टि करी ऊपरई, राम सुग्रीव सहु सुभट हरण्या। कोडिसिलवादि सम्मेतसिखरइं गया, नयण जिनराजना धुंभ निरख्या राम लखमण विमाने सहु वइसिनइ, नगरि केकिंध पहुता सकोई। राम कहई सुणो सुग्रीव सहु को तुम्हे, वइसि रह्या केम निश्चित होई ।। लंकगढ़ लेण चालउ सहु को सुभट, मत कदे मुझ विरह अगति ताती। सीत वलि जाइस्यइ तो मरण माहरो, थाइस्यइ फाटस्यइ दुख छाती ।। सुभट मुग्रीव कह देव सुणो वीनती, जुद्ध रावण संघातइम मडउ । जेण विद्यावलई तेण अधिको सदा, आजलगि तेज तेहनउ अखंडठ ।। तेभणी तेहनो भाइ छड अति वलर, परम श्रावक अनइ परम न्याई। परम उपगारकारी विभीषण सबल, प्रार्थना भंग न करई कदाई ।।
१-पेढी लगइ