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[ ८] घिग-धिग मूढ़ सिरोमणी हुँ थयो दुख तणी महा खाणि
दुरजण सोकि तपो दुरवचने हुइ हासी घर हाणि । वात्सल्य-विप्रलंभ का एक मार्मिक प्रसंग देखिये। रानी वैदेही का, पुत्र भामण्डल के हरण पर यह विलाप मात हृदय की घनीभूत वेदना को हमारे अन्तरतम मे उतारता चला गया है।वीररस-राम रावण युद्ध का एक सजीव चित्र ।
'सरणाइ वाजइ सिंधूडई, मदन मेरि पणि वाजइ ढोल दमामा एकल घाई, नादइ अम्बर गाजइ सिंहनाद करई रणसूरा, हाक बुंव हुकारा काने सवद पज्यो सुणियइ नहीं, कीधा रज बंधारा बुद्ध माहोमाहि सवलो लागे, तीर सहासडि लागी
जोर करीनई दे मारता, सुभटे तरुयारि भागी और भीषण युद्ध के बाद रक्तकी नदी यह गई।
'बहा रुधिर प्रवाह । नू माया हो।
माया माणस तिरजच बहुपरी हो ।' भयानक-राम द्वारा धनुभंग होने पर।
धरणी धूजी पर्वत काप्या, शेषनाग सलसलिया गल गरजारव कीधर दिग्गज, जलनिधि जल मछलिया अपचर बीहती जइ आलिंग्या, आप आपण भरतार
राखि राखि प्रीतम इम कहती, अम्हनइ तुं आधार करुण-लक्ष्मण की मृत्यु पर रानियों का विलाप, शम्बुक-वध पर