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सने नगर का वर्णन।
'गाइ भैसि छटी भमइ, धान चून भत्त्या ठाम गोहनी गोरस सूं भरी, फल फूल भऱ्या ठाम मारिग भागा गाडलां, छुट्या पड़या वलद
ठामि ठामि दीसइ घणा, पणि नहिं मनुप सबद्द पुत्र जन्मोत्सव वर्णन
'घर वारि वन्नरमाल बाँधी, कुकूना हाथा धरइ मुझ गूढ गरमा गोरडी ए, पुत्र जायउ इम कहइ
सहु मिली सूहव गीत गायई, हीयउ हरखइ गहगह।' प्रकृति-वर्णन-प्रकृति वर्णन में कवि ने कहीं रस नहीं लिया है। दण्डकारण्य बन का वर्णन केवल इन्हीं पंक्तियो में समाप्त कर दिया है।
"गिरी बहु रयणे भर्यो, नदी ते निरमल नीर
वनखड फल फूले भया, इहाँ बहु सुख सरीर ।' भाव व्यंजना--कवि की पैनी दृष्टि सभी रसों पर गई है। वस्तुतः घटनाओ का इतना विस्तृत धरातल मिल जाने पर ही कवि की प्रतिभा खुल कर ग्रन्थ में आधान्त विखर सकी है रसों का परिपाक देखिये कितना स्वभाविक प्रतीत होता है।
शृङ्गार-शृङ्गार के दोनों पक्षों संयोग एवं विप्रलम्भ के बहुत ही आकर्षक एवं मार्मिक चित्र सहज रूप से अंकित हो गये हैं। परम्परागत सीता का नख सिख वर्णन तो शृङ्गार का एक संयत रूप लिए हुए है ही, पर गर्भवती सीता का यह चित्र तो अपने आप मे पूर्ण सजीव है, स्वाभाविक है