________________
( ३६ )
ढाल छठी देसी--ओलगडीनी । राग-मल्हार ।। महाजन २ मिलीनइ सहु आव्यउ तिहा रे, विदा न मांगो जाय । हियडु फाटइ दुख भरे बोलता रे, आँसू आँखि भराय ।।१।। रामजी २ राजेसर वहिला आवज्यो रे, तुम विरहउ न खमाय । वीछडियां २ वाल्हैसर मेलड दोहिलउ रे, तुम दीठां दुख जाय ||२|| सगली २ राणी रोयइ हूबके रे, रोयई सगला लोग। नीद्रडी २ नाठी अन्न भावइ नही रे, व्याप्यउ विरह वियोग ।।३।। केकेइ २ नइ कहाँ लोक पातरी रे, रामनइ वाहिर काढि । भरत नइ २ दिवरायउ भार राज नउरे, विरूई स्त्री वेढि राढि ॥४रा०॥ पुरूष २ प्रधाने नगरी सोभती रे, दीसइ आज विछाय । चन्द्रमा २ विहुणी जेहवी यामिनी रे, कन्त विण नारि कहाय ॥शारा० जलधर २ विहुणी नेहवी मेदनी रे, विण प्रियु सिज्या जेम। पदक २ विहुणी हारलता जिसी रे, आज अयोध्या तेम ॥६ारा० ए जिहा २ जास्यइं पुरुप तिहा हुस्यइ रे, अटवी नगर समान । असरण २ हुस्या पणि आये हिवइ रे, नगर अयोध्या रान ||७|| रा०॥ लोकना २ वचन इम सुणता थका रे, सीता लखमण राम । जिनवर २ प्रासादइ आवीनइ रह्या रे, कीधउ जिन परणाम ||Boll तिणसमइ २ सूरिज देवता आथम्यउ रे, जाणे एणि विशेपि । रामनइ २ वियोगइ लोक आरडई रे, ते दुख न सकु देखि हराना
१-अयोध्या नगरी तेम