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राम थकां वीजा तणट, राजनउ नहीं अधिकार। सीह सादूलइ गुंजतइ, कुण वीजउ मिरगारि ॥२॥ कल्पवृक्ष आंगणि फल्यत, तरु वीजइ स्य३ काजि । स्क रइ बेड़ी वापड़ी, जे सरइ काम जिहाजि ॥३॥ राम विना देवा न द्यु, किणनइ राज्य हुँ एह । समझायल रामइ बली, लखमण बांधव तेह ॥४॥
[सर्वगाथा १२२] ढाल पांचवों ढाल-चेति चेतन करि, अथवा-धन पदमावती (प्रत्येकवुद्धना
पहला खंडनी आठवीं ढ़ाल ) लखमण राम वेऊ मिली रे, हिव चाल्या वनवासो। सीता पाणि पूंठि चली रे, समझावइ राम तासोरे॥१॥ राम देसउटइ जाय, हियड़इ दुःख न मायो रे। साथि सीता चली, जाणि सरीरनी छायो रे ॥२॥ रा० अम्हे वनवासइ नीसरयारे, तात तणइ आदेश । तू सुकुमाल छइ अति घणुं रे, किम दुःख सहिसि कोलेसोरे ॥३॥ रा० भूख तृषा सहिवी तिहारे, सहिवा तावड़ सीत। वन अटवी भमिवउ वली रे, न को तिहां आपणौ मीतो रे ॥४॥ रा० ते भणी इहां बइठी रहे रे, अम्हे जार्वा परदेस।। प्रस्तावइ आवी करी रे, आपणइ पासि राखेसोरे ।।शारा० सीता कहइ प्रीतम सुणउ रे, तुम्हे कहउ ते तो सांच । पणि विरहउ न खमी सकुंरे, एकलड़ी पल काचो रे॥६॥रा०