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लोक सुरणी हरषित थया, सोनइ सामि न होई रे। ए मोटा अरणगार मइ, किम दूपरण हुइ कोई रे॥१७१ सा०॥ साठी चोखा सूपडइ, छडतां ऊजला थायड रे । रूपइया खरा आगि मइ, घाल्यां कसमल जायइ रे ॥१८॥ सा०॥ पूजा अरचा साध नी, वलि सहु करिवा लागउ रे । जिन सासन थयउ ऊजल उ, भरम सहू नउ भागउ रे ॥१६॥ सा०॥ वेगवती ध्रम साभली, सयम लीघउ सारो रे । पहिलइ देवलोकि ऊपनी, देवो रूप उदारो रे ॥२०॥ सा०॥ बीजी ढाल पूरी थई, पणि परमारथ लेज्यो रे। समयसु दर कहइ सहु भरणी, साध नइ बाल म देज्यो रे ॥२१।। सा।
[ सर्वगाथा ४८
तिण अवसर इण भरत मइ, मिथिलापुरी प्रसिद्ध । विबुध विराजित जयसहित, सरगपुरी समरिद्ध ॥१॥ जनक नाम राजा तिहा, जनक समउ हितकार । रूपई रतिपति सारिखउ, करण समउ दातार ॥२॥ सीतल चद तरणी परि, तेज तपइ जिम सूर । इद्र सरीखउ रिद्ध करि, पालइ राज पडूर ॥३॥ वैदेही तसु भारिजा, रूपइ रभ समारण । भगत घणु भरतार नी, राजा नइ जीवप्राण ॥४॥ इंद्राणी जिमि इद्र नइ, हरि नइ लखमी जेम । चन्द तणइ जिमि रोहणी, राजा राणी तेम ।।५।।