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सीताराम चौपाई में प्रयुक्त राजस्थानी कहावतें
डा० कन्हैयालाल सहल अपने ग्रन्थो मे कहावतो के प्रचुर प्रयोग की दृष्टि से राजस्थान के कवियों में कविवर समयसुन्दर का नाम सबसे पहले लिया जाना चाहिए। इनके प्रसिद्ध ग्रन्थ "सीताराम चौपाई" की रचना सं० १६७७ के लगभग मे हुई। यह ग्रन्थ सरल-सुबोध भाषा मे लिखा गया है जिसमे लोक प्रचलित ढालों का प्रयोग हुआ है। सम्पूर्ण ग्रन्थ है खण्डों मे समाप्त हुआ है और प्रत्येक खण्ड में सात-सात ढाल है। लोकोक्तियों के प्रयोग की दृष्टि से इस ग्रन्थ का विशेष महत्व है। इसमें प्रयुक्त बहुत सी कहावतें यहाँ उद्धत की जा रही है .(१) उंध तणइ विछाणउ लाधउ, आहीणइ दूझाणउ बे । मूगनइ चाउल माहि, घी घणइ प्रीसाणउ वे ।।
(प्रथम खण्ड, ढाल ६, छन्द ५) (हि० भा० ऊँघती हुई को बिछौना मिल गया ।) ___ (२) छठ्ठी रात लिख्यउ ते न मिटइ। (प्रथम खण्ड, छन्द ११)
(छठी की रात जो लिख दिया गया, वह अमिट है।) (३) करम तणी गति कहिय न जाय । ( दृमरा खण्ड, छन्द २४) ।
(कर्म की गति कही नहीं जा सकती।) (४) तिमिरहरण सुरिज थका, कुंण दीवानउ लाग ।
(दसरा खण्ड, ढाल ३, छन्द १२) (सूर्य के होते दीपक को कौन पूछे ?)