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वोध से राम का मोह दूर हो गया। उसने आभार मानते हुये कहामुझे दुर्गति से बचाने वाले तुम कौन हो महानुभाव । देवों ने अपना प्रकृत रूप प्रकट करके कहा-मैं जटायुध देव हूँ जो आपके नवकार मंत्र सुनाने से चतुर्थ देवलोक में उत्पन्न हुआ। और दूसरा यह आपका सेवक कृतान्तमुख देव है। आपको इस प्रकार लक्ष्मण का मृत देह लेकर घमते देखकर हमलोग प्रतिबोध देने आये हैं। . .
रामका चारित्र ग्रहण रामने लक्ष्मण की अन्त्येष्टि करके वैराग्य परिणामों से संसार त्याग करने का निश्चय किया। उन्होंने शत्रुघ्न को बुला कर राज्य सौंपना चाहा । शत्रुघ्न ने कहा-मैं तो स्वयं राज्य से विरक्त और आपके साथ चारित्र लेने को उत्सुक हूं। राम ने अनंगलवणके पुत्र को राज पाट सौंप दिया। सुग्रीव और विभीषण भी अपने पुत्रों को राज्याभिषिक्त कर राम के साथ दीक्षित होने के लिये आ गये। अरहदास श्रावक ने मुनिसुव्रत स्वामी के शासनवर्ती सुव्रत साधुके पधारने की सूचना दी और उनके पास चारित्र लेने का सुझाव दिया। राम ने उसको इस समाचार के लिये धन्यवाद देकर अयोध्या मे संवपूजा, अष्टान्हिका महोत्सवादि प्रारम्भ कर दिये और निर्दिष्ट मुहूर्त मे सोलह हजार राजा और संतीस हजार स्त्रियों के साथ सुव्रतमुनि के पास चारित्र ग्रहण कर लिया।
राम का केवलज्ञान, धर्मोपदेश व निर्वाण ___ महामुनि रामचन्द्र पंच महाव्रत लेकर उत्कृष्ट रूप से पालन करने लगे। वे कूर्म की भांति गुप्तेन्द्रिय और भारण्ड पक्षीकी भांति अप्रमत्त