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[ ७३ ] नहीं लौट सकते। लक्ष्मण की रानियों का चीत्कार सुनकर राम ने उसे मूर्छित की भांति समझ कर कहा-मेरे प्राणवल्लभ भ्राता को किसने रुष्ट कर दिया ? राम ने पास में आकर मोहवश उसे उठा कर हृदय से लगाया, चुम्बन किया। पुकारने पर जब लक्ष्मण न बोला तो पागल की भांति प्रलाप करते हुए वे मूर्छित होकर गिर पड़े। थोड़ी देर में शीतोपचार से सचेत होनेपर उन्होने फिर विलाप करना प्रारम्भ किया। लक्ष्मण की रानियां भी चीत्कार करती हुई कल्पान्त विलाप करने लगी।
राम ने लक्ष्मण के मृतक कलेवर को मोहवश किसी प्रकार नहीं छोड़ा। वे उसे अपने पर रुष्ट हो गया समझ रहे थे। सुग्रीव, विभीपण आदि ने लक्ष्मण की अन्त्येष्टि के हेतु राम को समझाने की बहुत चेष्टा की पर राम ने कहा-दुष्ट पापियो। अपने घरवालों को जलाओ, मेरा भाई जीवित है, मेरे से रुष्ट होकर इसने मौन पकड़ ली है। राम-लक्ष्मण के कलेवर को कंधे पर उठाकर महलों से निकल पड़े। वे कभी लक्ष्मण को स्नान कराते, वस्त्र पहनाते, मुँह मे भोजन देने की चेष्टा करते। इस प्रकार मोह मूर्छित राम को लक्ष्मण के कलेवर की परिचर्या मे भटकते छ मास बीत गये। इधर सम्बुक, खरदूषण का वैर लेने के लिए विद्याधरो ने अयोध्या पर चढाई कर दी। राम को जब आक्रमण का वृतान्त ज्ञात हुआ तो वे लक्ष्मण के कलेवर को एकान्त मे रख कर शत्रुओं के सामने युद्ध को प्रस्तुत हो गये। देव जटायुध और कृतान्तमुख का आसन कंपायमान होने से उन्होंने देवमाया से गगनमंडल में अगणित सुभट प्रस्तुत कर राम को अचिन्त्य सहाय किया जिससे विद्याधरों का दल हार कर भाग गया। देवो ने राम