________________
श्रीशम पुरोहित का पुत्र श्रीभूति हुआ। जिसकी भार्या सरस्वती की कुक्षी से गुणवती का जीव वेगवती नामक पुत्री हुई। वह मृगली के भव से मनुष्य भव में आकर फिर हथिणी हुई थी, वहाँ कादे मे फंस जाने से चारण मुनि द्वारा नवकार मन्त्र प्राप्त कर वेगवती का अवतार पाया। उसने साधु मुनिराज की निन्दा गर्दा की, पश्चात् पितृ वचनों से धर्म ध्यान करने लगी। रूपवान वेगवती को राजकुमार मयंभू ने पिता से मांगा। श्रीभूति के माग अस्वीकार करने,पर सयंभू ने उसे रात्रि मे मार कर वेगवती से भोग किया। वेगवती ने क्षुब्ध होकर उसे भवान्तर मे मरवा कर बदला लेने का श्राप दिया। वेगवती संयम लेकर तप के प्रभाव से ब्रह्म विमान मे देवी उत्पन्न हुई। सयभूकुमार भी भव भ्रमण करता हुआ क्रमशः मनुष्य भव में आया और विजयसेन मुनि के पास दीक्षित हुआ। एक वार उसने समेतशिखर यात्रार्थ जाते हुए कनकप्रभ विद्याधर की ऋद्धि-देखकर ताशीमृद्धि प्राप्त करने का नियाणा कर लिया। वहीं से तीसरे देवलोक मे देव हुआ। वहां से च्यवकर वह रावण के रूप में समृद्धिशाली प्रतिवासुदेव हुआ। धनदत्त का जीव पांचवे देवलोक से च्यवकर दशरथनन्दन रामचन्द्र हुआ। वेगवती ब्रह्म विमान से च्यवकर सीता हुई। गुणवती का भाई गुणधर सीता का भाई भामण्डल हुआ। वसुदत्त का ब्राह्मण यज्ञवल्क मर कर विभीषण और नवकार मन्त्र से प्रतिबोध पानेवाले बैल का जीव सुग्रीव राजा हुआ। इस प्रकार पूर्वभव के वैर से सीता के निमित्त को लेकर रावण का संहार हुआ। सीता ने वेगवती के भव में मुनि को मिथ्या कलंक दिया था खिसक कर्म विपाक से उसे चिरकाल तक कलंक का दुख भोगना पड़ा।