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[ ५८ ] सम्बन्ध में आशंकाएँ फैल गई कि परस्त्रीलपट रावण के यहाँ इतने दिन रह कर अवश्य ही वह शील वचा नहीं सकी होगी, पर राम ने केवल प्रेम व अभिमानवश ही उसे पुनः स्वीकार किया है। इस प्रकार नगर की नाना अफवाहें सेवक द्वारा राम ने सुनी और दुःखी होकर स्वयं रात्रिचर्या के लिये नगर में निकल पड़े। राम किसी कारू के गृह द्वार पर कान लगा कर सुनने लगे। उस गृहस्वामी की पत्नी विलम्ब से घर से लौटी थी और वह उसे गाली देते हुए कहने लगा कि मुझे राम जैसा मत समझ लेना, मैं तुम्हें घर में नहीं प्रविष्ट होने दूंगा। राम ने अपने प्रति मेहणा सुन कर बड़ा खेद किया और जले पर नमक छिड़कने जैसा अनुभव किया। राम ने सोचा, लोग कैसे तुच्छ बुद्धि और अवगुणग्राही होते है ? दुष्ट व दुजेनों का काम ही पराया घर भांगने का है । उल्लू को सूर्य नहीं सुहाता । सर्वत्र सीता का अपयश हो रहा है, भले ही झूठ ही हो पर लोगों मे निन्दा तो हो ही रही है, अतः अव भी मैं सीता को छोड़ दूं तो अच्छा ही है। इस प्रकार विकल्प जाल में राम को चिन्तातुर देखकर लक्ष्मण ने चिन्ता का कारण पूछा। राम ने नगर में फैले हुए सीता के अपयश की बात कही तो लक्ष्मण ने कुंपित होकर कहा-जो सीता का अपवाद करेगा उसका मैं विनाश कर दूंगा। राम ने कहा-लोक वोक है, किस-किस का मुह पकड़ोगे? लक्ष्मण ने कहा-लोग भख मारें, सीता सच्ची शीलवती है, परमात्मा साक्षी हैं। राम ने कहा-तुम्हारा कहना ठीक हैं पर अब सीता का त्याग किये विना अपयश दूर नहीं होगा। लक्ष्मण ने वहुत मना किया पर राम ने उसकी एक न सुनी और सारथी कृतान्तमुख को बुला कर आज्ञा दी कि तुम तीर्थयात्रा की दोहद पूर्ति के बहाने सीता