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[ ३० ] कामाशक्त रावण की व्याकुलता रावण ने सीता को हरण करके ले जाते हुए उसे प्रसन्न करने के लिए नाना प्रकार के वचन प्रयोग किये पर सीता ने उसे करारी फटकार बता कर निराश-सा कर दिया। फिर भी वह उसे लंका ले गया और देवरमण उद्यान में छोड़ दिया। जब रावण राजसभा में जाकर बैठा तो मंदोदरी आदि को साथ लेकर रोती हुई चन्द्रनखा आई और कहने लगी कि मुझे पति खरदूपण और पुत्र संबुक का . दुःख उपस्थित हो गया, तुम्हारे जैसे भाई के विद्यमान रहते ऐसा हो जाय, तो फिर क्या कहा जाय ? रावण ने कहा सहोदरे ! भावी प्रबल है, आयुष्य कोई घटा वढ़ा नहीं सकता पर मैं थोड़े दिनों में तुम्हारे शत्रु को यम का मेहमान बना कर छोड़ेगा। इस प्रकार वहिन को आश्वस्त कर जब रावण मंदोदरी के पास गया तो उसने उससे गहन उदासी का कारण पूछा। रावण ने कहा-मैं सीता को अपहरण करके लाया हूं, पर वह मुझे स्वीकार नहीं करती। उसके बिना मैं हृदय फट कर मर जाऊगा ! मन्दोदरी ने कहा-सीता या तो निरी मूर्ख है जो तुम्हारे जैसा पति स्वीकार नहीं करती अथवा वह सती शिरोमणि है । पर तुम उससे जबरदस्ती भी तो कर सकते हो ? रावण ने कहामैं अनन्तवीर्य मुनि के पास नियम ले चुका हूं, अतः मैं नियम भंग कदापि नहीं करूंगा! मैं आशापूर्वक लाया हूं, यदि तुम कुछ उपाय कर सको तो करो।
सीता का आत्मबल तथा मन्दोदरी वाद-प्रसंग मन्दोदरी ने सीता के पास जाकर न करने योग्य दूती काये किया। सीता ने कहा कोई भी सती स्त्री इस प्रकार की शिक्षा दे