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श्रीमती चौढालिया
दोहा
खीर खाड मिलीया खरा, घृत विण न वर्ण वात, तिम इहा चार प्रकार मे, वरणु शील विख्यात, १
शीले सुर सानिध कर, शीले लील विलास, शीले दुरगति दुख टल, शीले पामै शिव वास, २ ते ऊपर सुणजो सहू, श्रीमति ना दृष्टात, शील राख्यो जतने करी, ते हिव सणजो तंत, ३
ढाल (१) चौपई
इणहिज दखण भरत मझार, अग-देश आरज आचार, धण कण कण रीध अपार, वसतपुरि अलका अवतार, १ प्रवल तेज प्रताप पडूर, शत्रुदलन तिहा राजा सूर, तिण राजा रे जीव समान, मतिसागर मुहतो प्रधान, २ सार पुरि नि कर सभाल, चंद्रधवल नामै कोटवाल, चतुरा जासु एकज चित्त, सुन्दरदत्त नामे प्रोहित, ३ वह व्यापार घणो बाजार, गढ मढ मदिर प्रौल प्राकार उत्तम जन तिहा वसे अनेक, वसतपुरि नगरी सुविवेक, ४ हिव सुन्दरदन्त प्रोहित तणी, श्रीदत्त मित्र अछे हित वणो, ' तेहने नार अछे श्रीमती, शील गुणे करि सीता सती, ५