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वर्मवद्धन ग्रन्थावली
बहु जम चदनबालिका. लघु हिज वय जिण चारित्र लीध कि। साधवी नहम छतीस में, कीरती वीर जिणेसर कीध कि 1137!! भीना चीर स्कायवा, गईय गुफा मे राजुल रंग कि । रहनेमे काउसंग रह्य , अवलोकी को सुन्दर अंग कि उll अकुम (ना) वसि गज आणीयो, दीघो राजमती उपदेश कि । निपट प्रमत्या नेमजी. लाभ नहीं दूपण लवलेस कि १३३। शी. चीर दुर्योधन खाचीया. पाचाली सक्रीय उपाय कि। सौ अट्टोनर साउला. प्रगट्या नवनव शील पसाय कि ाशी. देव उपाडी दौपदी, आणी धातकीविंड आवास कि। पदमोत्तर नृप प्रारथी, छेडे मत मुमने च मास कि ॥३५॥ कीधी बाहर किसन जी, पदमोत्तर पिण लाग्यो पाय कि । पाचे पाडब नी प्रिया. पाम्यो वंछित शील पसाय कि ॥३३॥ चित चौखे रामचंदनी. कौशल्या माता सुखकार कि । कष्ट टल्या बंछित फल्या, सतीया में सील सिरदार कि ॥३७॥ रावण रे कर्ज रही. सीता रो किम रहियो सील कि। लोक वाक के लागुआ, ए परपूठ करै अवहील कि 1॥ ३८॥ शी. पावक कुण्ड माहे पड़ी, जल शीतल मे न्हाई जेम कि । सड कहै धन धन ए सती, हुई निकलंक जाण हेम कि ।३६। शी. हाथी जेहनं अपहरी जिण वन मे खामी जीवराशि कि। वेऊ सुत नृप बूझिव्या, साधवी पद्मावती स प्रकाश कि ।४०१ साते चेडा नी सुता, शिवा सुज्येष्टा जेष्टा सार कि ! पद्मावती प्रभावती, चेलणा मृगावतीय चितारि कि ।४१। शी.