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धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली कनक तणो देहरौ दसी, कंचण नी वलि आप कोड कि । कष्ट-तनी किरिया, ह नहीं सील तणी ते होड कि ||१०|| शी. पालै शील भली परै, टाल दूपण परहा तेम कि ।। वखाणे सहू को वली, हेक रतन नै जडीयो हेम कि ||११|| शी निरमल नयणे निरखीयें, वयण वदें नहीं मयण विकार कि । सुर सेवा करै सयण ज्यु, शील रयण थी अधिको सार कि १२ सोहै मनुप सुशीलीयो, कुसीलीया री शोभन काइ कि । कोड रीस मता करै, सीख भली साची कहिवाइ' कि ।१३। शी. ललना सुं लुबधो थकी, लोपि गमावै लज्जा लीक कि। जायै धन पिण जूजूऔ, नीर रहै नहि फूटी नीक कि ।१४। शी. पुरम भला स्त्री पापिणी, पापी पुरप नैं स्त्री पुन्यवत कि । मत' एकात म धारिज्यो, परणामे सहु फेर पडत कि ।१५। शी. कष्ट धन भेलौ करै, झगड़ा झाटा करि करि झूठ कि । खरचै नहीं धरम खेत मे, मानवंती नैं द भर मूठ कि ।१६। शी की कम करडे कुकरी, मुख नौ झरते मास मसूढ कि । ममन हुवै ते म्वाद मैं, माहिली हानि न जाणं मूढ कि ।१७। शी अवगुण कोड न अटकलै, मेल करावे तिण सु मेल कि । गुम्जन स्यु धारै गुसौ, अवसर नाखै ते अवहेल कि ।१८। शी महिला रइ मगति मिल्याँ, मूखम जीव मरइ नव लाख कि। भगवतइ इम भाखीयौ सूत्र सिद्वाते लाभ साख कि 18| शी.
२ सुखदाइ, २ मन, ३ हाड कस सूर. कूकर ।