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________________ ૨૮૬ धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली अंटावीस लब्धि स्तवन ॥ दोहा ॥ प्रणम् प्रथम जिणेसरू, शुद्ध मनै सुखकार, लवधि अट्ठावीस जिण कही, आगम ने अधिकार ॥१॥ प्रश्नव्याकरण प्रगट, भगवति सूत्र मझार, पन्नवणा आवश्यकै, वाल लवधि विचार ||२|| अमल त करि ऊपन, लवधां अट्ठावीस, ए हिव परगट अरथ सु, सामलिज्यो सुजगीस ॥३॥ ढाल १ सफल संसार नी। अनुक्रमे हेव अधिकार गाथा तण, लवधि ना नाम परिणाम सरिखा भणे । रोग सहु जाय जसु अंग फरस्था सही, प्रथम ते नाम छै लबधि आमोसही ॥४॥ जास मलमूत्र औपध समा जाणिय, वीय विप्पोसही लवधि वखाणि । श्पमा औषध सारिखौ जेहनौ, त्रीजी खेलोसही नाम छ तेहनौ ॥१॥ देहना मैल थी कोढ दूरे हवे, चौथी जल्लोसही नाम तेहनो चबै ।। केस नख रोम सहु अग फरसें लही, - रहे नहीं रोग सम्बोसही ते कही ।।६।।
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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