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धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली
अंटावीस लब्धि स्तवन
॥ दोहा ॥ प्रणम् प्रथम जिणेसरू, शुद्ध मनै सुखकार, लवधि अट्ठावीस जिण कही, आगम ने अधिकार ॥१॥ प्रश्नव्याकरण प्रगट, भगवति सूत्र मझार, पन्नवणा आवश्यकै, वाल लवधि विचार ||२|| अमल त करि ऊपन, लवधां अट्ठावीस, ए हिव परगट अरथ सु, सामलिज्यो सुजगीस ॥३॥
ढाल १ सफल संसार नी। अनुक्रमे हेव अधिकार गाथा तण,
लवधि ना नाम परिणाम सरिखा भणे । रोग सहु जाय जसु अंग फरस्था सही,
प्रथम ते नाम छै लबधि आमोसही ॥४॥ जास मलमूत्र औपध समा जाणिय,
वीय विप्पोसही लवधि वखाणि । श्पमा औषध सारिखौ जेहनौ,
त्रीजी खेलोसही नाम छ तेहनौ ॥१॥ देहना मैल थी कोढ दूरे हवे,
चौथी जल्लोसही नाम तेहनो चबै ।। केस नख रोम सहु अग फरसें लही,
- रहे नहीं रोग सम्बोसही ते कही ।।६।।