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________________ २८४ धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली चौरासी आशातना स्तवन ढाल-विलसै ऋद्धि समृद्धि मिली। जय जय जिण पास जगत्र वणी, शोभा ताहरी संसार सुणी । आयो हुँ पिण धरि आस घणी, करिवा. सेवा तुम्ह चरण तणी १ धन जन जे न पड़े जंजाल, उपयोग सु वेसि जिन आले । आसातन चौरासी टालै, शाश्वत सुख तेहिज संभाले ॥२॥ जे नाखें सलेषम जिनहर में, कलहउ करें गाली जूअ रमै । धनुषादि कला सीखण ढुकै, कुरलौ तंबोल भखै थूकै ॥३॥ सर वाय वडी लघु नीति तणी, संज्ञा कंगुलिया दोप सुणी। नख केस समारण रुधिर क्रिया, चांदी नी नांखे चावड़िया'।४। दांतण नै घमन पियें कावौ, खावइ धाणी फूली खावौ । सूर्व वीसामणि विसरामै, अजगज पसु नइ दामण दामे ।।५।। सिर नासा कान दशन आंखें, नख गाल वपुस ना मल नाखे । मिलणौ लेखी करइ मंतरणी, विहचण अपणो करिधन धरणौ। वैसे पग ऊपरि पग चडिया, थापै छाणा छड़े ढुंढणिया। . सुकवइ कंप्पड़ कप्पड़ वड़िया, नासीय छिपइ नृपभय पड़िया।।। शोके रोव विकथाज कहै, इहा संख्या वैतालीस लहें । हथियार घड़े ने पशु बांध, ताप नाणौ परिखें राधइ ॥८॥ भांजी निसही जिनगृह पंसद, धरि छत्र में मडप में बइसें। हथियार धरै पहिरे पनही, चांवर बीजै मन ठाम नहीं ॥ ६ ॥ तनु तेल सचित फल फूल लिये, भूषण तजि आप कुरूप थिय । दरसणथी सिर अंजलि न धरइ, इग साडें उतरासंग करें ॥१०॥
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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