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धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली देवेंद त्थुय नवमौ होइ, दाखौ तिहा गाथा सय दोइ ।। दशम सथारपयन्न सवासी, दसे सतावीससे परकासौ ॥२४॥ अंग इन्यार नै उपाग बार, मूल सूत्र चउ नदि अणुयोगद्वार । छ छेद दश पयन्ना मेलीस, ए सूत्र आगम पंतालीस ॥२५॥ सूत्र पंतालीस आगम सख्या, सहस अठयोत्तर सातमें काला । आज ऊनाधिक प्रायें एह, तंत तो केवलि जाणे तेह ॥२६॥ सूत्र निजुत्ति चुणि नै टीका, एहना बहु विस्तार अजीका । छलख गुणचालीस सहस्सा, पाचसै छत्तीस जाण रहम्सा ॥२७॥ कलसः इमइण भरतै आज वरत, भव्य जीव जिके सही। आसता आणी तत्व जाणी, वीर वाणी सरदही ।। बिहुतर जेसलमेर नगर, विजयहर्ष विशेष ए। धरमसी पाठक तवन कीधौ. दुरस पुस्तक देख ए ।।२८।।
२४ जिन गणधर साधु साध्वी संख्या गर्भित स्तवन : आदीसर पहलो अरिहंत, गणधर चौरासी गुणवत । प्रणम् सहस चौरासी साध, साध्वी त्रिणलाख गुणे अगाध ॥१॥ अजितनाथ बीजो मन आणु, प्रणमीजै गणधर पंचाणु । साह इकलख वंदौ भवियां, त्रिण लख वीस सहस साधवीयां १२ हिव संभव जिन तीजो होय, गणधर एकसो ने वलि दोय । दुइ लख साहु साहुणी सार, तीन लाख छतीस हजार ।३। अभिनंदन चोथो जिनराय, गणधर एकसौ सोल कहाय । तीन लाख मुनि संख्या भाख, आर्या तीस सहस छः लाख ४।