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धर्मबर्द्धन ग्रन्थावली तरंण रिखराज जेहाज जिम तारवा,
रतनहर राजहर रीति राजा ॥३॥ वडी छति मति उगति जुगति रहणी वडी,
महिपति वड वडा वयण मोहे । भलें धर्मशील सौभाग्य ल्ये भल भला,
सूरिवर सिहर सुखसूरि सोहे ॥ ४ ॥
(३) जिनसुखसूरि छप्पय सकल साख सिद्धात भेद विधि विधि रा भाखे । अवल धरम उपदेश, दुरस हटाते दाखे । वडि पहुंचि व्याकरण तास समवड कुण तोले । जोडे तरक जुगति बहुत शुद्ध संस्कृत वोले ॥ खरतरे सदा दीसे खरी, प्रसिद्धि भली पुन्य पूर री। इकवीस चौक गच्छ से अधिक, सोभा जिनसुखसूरिरी।
(४) जिनसुखसूरि अमृतध्वनि खरतरगच्छ जाणे खलक, सयल गुणे सुसमृद्ध ।
शोभा जिनसुखसूरि री, सहु विधि धरा प्रसिद्ध । चाल-धरा प्रसिद्ध द्वज जस वद्ध,
ध्यान लवद्ध द्विपणा सुद्ध धीमा बुद्धि, धुनि धन रुद्ध भ्रूण विरुद्ध, द्वेपन धंध द्धीरज सिद्ध द्धोरी सुद्ध, द्धौत विरुद्ध द्वंसि कुबुद्धि, द्धवत परिद्ध धारण निद्ध द्धन गुरू वुद्ध,