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सतरह भेदी पूजा स्तवन
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केसर चदन कुमकुम, अंगी रचो अनूप । करि नव अगे नव तिलक, पूजा वीय प्ररूप ॥३॥ वसन युगल उज्जल विमल, आरोंपें जिन अंग । लाभ ज्ञान दरसण लहै, पूजा तृतीय प्रसंग ।।४॥ करपूरै कसतूरिये, विविध सुगन्ध वणाय । अरिहंत अंगै अरचतां, चौगइ दुख चूराय ॥५॥ मन विकस तिम विकसता, पुहप अनेक प्रकार । प्रभु पूजाए पंचमी, पंचमगति दातार ॥ ६॥ छठी पूजा ए छती, महा सुरभि पुष्पमाल । गुण गुथी थापो गले, जेम टलै दुख जाल ॥७॥ केतक कपक केवड़ा, सौभे तेम सुगात । चाढो जिम चढता हुवै, सातमीयं सुख सात ॥ ८ ॥ अंगै सेल्हारस अगर, पूरौ मुखै कपूर । अरिहंत पूजा आठमी, करम आठ कर दूर ।। ६ ॥ मोहन धज धरि मस्तक, सूहव गीत समूज । दीजै तिन प्रदिक्षणा, परसिद्ध नवमी पूज ॥ १० ॥ प्रभु सिर मुगट धरौ प्रगट, आभरण सुघट अनेक । वाहै सोहै बहुरखा, विधि दशमी सुविवेक ।। ११ ।। फूलहरौ अति फावतौ, फू दे लहकै फूल । महकै परिमल फल महा, इग्यारमी पूज अमूल ।। १२ ।। पुहप सुरभि पाचे वरण, वरषा करण विशेप ।। . अधो बध मुख ऊरधे, द्वादशमी विधि देख ।। १३ ।।