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श्री पार्श्वनाथ स्तवन
२११ चित्त शुद्धे करि हुं नित सुणिवा चाहु,
तुझ उपदेश अमी को ॥२॥ नै० देवल देवल देव घणा. ही दीसे,
तुम सम जस न कही को ॥ ३ ॥ नै० पुण्यै करि प्रभु साहिब पायो, ।
सोइ पायो मे राज पृथ्वी को ॥ ४॥ नै० कीजै मया मुझ सेवक कीजै साचो,
कीजो मत अवर हथी को ॥५॥नै० रूप अनूपम तेज विराजै तैसो,
सूरिज को न ससी को ॥६॥ नै० पास जिनेसर सहु मन वंछित पूरे,
साहिब श्री धर्मसी कौ ॥७॥ न०
श्री पार्श्वनाथ स्तवन
महिमा मोटी महियल हो, परगट जिनवर पास।
सुरनर नित सेवा करै हो, आणीय अधिक उलास ॥१॥ "जगनायक जिनवर गुण जपो हो, जसु जपतां दुख जाय ।
थिरे धरि नवनिधि थाय ॥२॥ ज० मन मोहन मूरति भली हो, सब ही काज सुहाय । चरण कमल सुख चाहती हो, मुझ मन भमर मोहाय ॥३।। ज० सिर उपर मुकट सुहामणो हो, कुण्डल दोन कान। झिगमि (ग) तेजे झलकता हो, सूरिज तेज समान ॥४॥ ज०